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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
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की जैसे-चंदनबाला, मैना सुन्दरी, मृगावती आदि-और तीर्थंकरों की जीवनी में भी पार्श्वनाथ चरित, महावीर चरित, नेमिनाथ चरित, ऋषभदेव चरित की संख्या विशेष है। इन तीर्थंकरों की जीवनी या चरित में घटनाओं का क्रम समान होने पर भी कल्पना का अंश भी रह सकता है। फिर भी शैली की उदात्तता के बावजूद भी नूतन प्रसंगों की सर्जना संभव नहीं होती। सतियों की जीवनियों में भी ऐसे ही सामान्य परिवर्तन-परिवर्द्धन-की संभावना रहती है, जबकि दूसरे प्रकार की जीवनी में-आचार्यों या विद्वानों की-यह संभावना कम रहती है, क्योंकि जीवनीकार के प्रत्यक्ष परिचय या आधारभूत सामग्री के साथ लिखी गई होने से वास्तविकता और साक्षी-प्रमाण की विशेष प्रतीति होती है। जीवनीकार के जीवन का वास्तविक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण और सम्यक् निरूपण के साथ उसके प्रस्तुतीकरण में रोचकता व जीवन्तता होनी आवश्यक है। साहित्यिक शैली में जीवनीकार के जीवन के महत्वपूर्ण भाग को प्रस्फुटित करना अपेक्षित है। जीवनी की यह महत्वपूर्ण विशेषता है कि जीवनी लेखक का कर्तव्य बन जाता है कि वह चरित नायक के जीवन को क्रमशः अन्वेषित एवं उद्घाटित करे। प्रारम्भ से ही चरित्र में महत्ता और विशेषता के दर्शन करने लगना उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से स्वाभाविकता या वास्तविकता का ह्रास होने की संभावना बनी रहती है।
__शशिभूषण शास्त्री लिखित-'जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरी की जीवनी' में लेखक ने आचार्य की विद्वता एवं लोक-कल्याण के कार्यों पर प्रकाश डाला है। इसके लिए उन्होंने समय-समय पर प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के लेखों तथा पुस्तकों को आधार बनाया है, ताकि इसकी सत्यता में विश्वास बना रहे। अकबर बादशाह के समय हो गये इन आचार्य को जीवनी से जैन जगत के अन्य आचार्यों तथा मुनियों को यह प्रेरणा मिलती है कि जैन साधु केवल आत्म कल्याण में ही रत नहीं रहता। बल्कि दया, ममता, करुणा, अहिंसा पूर्ण व्यवहार व ज्ञान के फैलाने के द्वारा समाजोपयोगी कार्य भी करते हैं। जीवनी में तिथि-बार संवतृ आदि का यथा-स्थान जिक्र किया गया है, जिससे घटना-क्रम में विश्वसनीयता बनी रहती है। लेखक की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है तथा शैली में रोचकता का निर्वाह अंत तक बना रहता है।
'सच्चे साधु' में अभयचन्द गांधी ने विजयधर्म सूरि महाराज की जीवनी अंकित की है, जिसकी भाषा पूर्णतः साहित्यिक होने से प्रकृति व मानव मन के सुन्दर चित्र अंकित किये हैं। जीवनी का प्रारंभ ही प्रकृति-वर्णन से ही