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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य भिन्नता के कारण प्रत्येक जीवन-चरित का विशिष्ट महत्व रहता है। बहुतों की जीवनी या चरितों की शैली में सीधे रूप से प्रसंगों को वर्णित करने की सरलता के साथ बोधात्मकता तथा दार्शनिकता का पहलू भी रहता है, जबकि संवादों की तीव्रता, ऐतिहासिकता, चरित्र के आन्तरिक जीवन का विश्लेषण, भाषा-शैली की उत्कृष्टता, लाक्षणिकता, तीव्रता व रोचकता बहुत कम चरित्र - ग्रन्थों में पाई जाती है। चतुर्थ अध्याय में इसकी विषय-वस्तु के सम्बंध में हमने विस्तार से विचार किया है। वसन्त कुमार जैन ने भगवान ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ जी व महावीर स्वामी की जीवनियाँ मधुर शैली में लिखी हैं, जो आज के 'भौतिकवादियों को आध्यात्मिक रस की कडुवी दबा बतासे की मधुरता में ' लिपेट कर पिलाने सदृश्य है । इन ग्रन्थों में दार्शनिकता, ऐतिहासिकता तथा साहित्यिकता तीनों का सुन्दर समन्वय हुआ है। लेखक की मधुर प्रवाहशील भाषा का रूप जगह-जगह पर दृष्टिगोचर होता है-यथा 512 लेखक ने वार्तालाप - संवाद द्वारा प्रश्नोत्तरी की, उदाहरण की पद्धति को अपनाकर सुन्दर वातावरण के साथ ज्ञान तथा शिक्षा का संदेश दिया है। प्रश्नोत्तरी के माध्यम से वर्णित ऐसा ज्ञान बोझिल नहीं बन पड़ता - उदाहरणार्थ'अरे यदि कर्म फिर भी ऐसी आत्मा का कुछ बिगाड़ सकते हैं तो --तो-- हाँ, हाँ! बोलो तो -- क्या ?' 'तो समझो, वह आत्मा महान आत्मा नहीं हो सकती । ' 'कल्पना तो सुन्दर है, पर विवेक और न्याय संगत नहीं । ' क्यों ? वह इसलिए कि आत्मा प्रभावशाली है अवश्य, पर कर्मावरण उसको ढक देते हैं तो उसका प्रभाव उसी तक सीमित रहकर लुप्त-सा रह जाता है। 'वह कैसे ?' 'जैसे सूर्य प्रभावशाली होता है, होता है कि नहीं! 'हाँ, हाँ होता है।' पर जब बादल उसके आगे छा जाते हैं तो प्रकाश कहाँ चला है?" ‘उसका प्रकाश....उसका प्रकाश छिप जाता है।' तो क्या सूर्य से भी विशेष आभा वाला या शक्तिशाली बादल है ?' नहीं तो! (पृ॰ 60) ऐसे दृष्टान्त प्रत्येक पृष्ठ पर मिलते हैं। लेखक की आलंकारिक, भाषा-शैली भी दृष्टव्य है - रंग-बिरंगी कलियों से शोभित, मन्द सुगन्ध पवन से सुरभित, सुमधुर, चहचहाते विहंग - गण से चर्चित और मदमाती, इठलाती, सरसाती शीतल नीर सहित सरिता से मंडित यह नगरी इन्द्र की पुरी को भी मात दे रही है। (पृ॰ 2)। तीर्थंकरों के चरितों की प्रथा न केवल आधुनिक काल में ही प्रवर्तमान
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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