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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 485 सोचने का भार पाठकों के ऊपर छोड दिया है। + + + कलाकार ने पात्रों का चरित्र-चित्रण करने में अभिनयात्मक शैली का प्रयोग किया है। जिससे कथाओं में जीवटता आ गई है। तर्क पूर्ण और तथ्य विवेचनात्मक शैली का प्रयोग रहने पर भी कथाओं की सरसता ज्यों की त्यों है। चलती-फिरती भाषा के प्रयोग ने कहानियों को सरल व बुद्धि ग्राह्य बना दिया है। भगवत जी ने साहित्यिक भाषा के साथ-साथ उर्दू के शब्दों का भी खुले रूप से प्रयोग किया है जैसे-वेग, बेफिक्र, कसमकश, वाज़िब, गैरहाजिर, नदारद आदि, तो कहीं-कहीं अंग्रेजी के शब्द भी स्वाभाविकता से आ गये हैं। बाबू कामताप्रसाद जैन की कथाएं प्रायः ऐतिहासिक एवं पौराणिक ही हैं। उनकी भाषा-शैली में सरलता, रोचकता के साथ ऐतिहासिकता का तत्त्व भी शामिल है। लेखक ने अपनी कल्पना-शक्ति से भी काम लिया है, लेकिन वे बिल्कुल कपोल-कल्पित नहीं है। अपनी कहानियों की शैली एवं विशेषता के सम्बंध में उन्होंने 'नवरत्न' व 'पंच रत्न' की भूमिका में जैन कहानी साहित्य के प्रारम्भ और विकास के सन्दर्भ में स्पष्टता की है-'हम जानते हैं कि साहित्य कला की दृष्टि से हमारी कहानियाँ ऊँचे दर्जे की नहीं कही जा सकती और इसलिए विद्वत्-समाज में उनका मूल्य विशेष न आंका जाय तो इसका हमें खेद नहीं है, क्योंकि पहले तो हमारा यह बाल प्रयास है और दूसरे हमारा उद्देश्य इसमें साहित्य पूर्ति के अतिरिक्त कुछ अधिक है। जैनों की अहिंसा एवं भीरुता के कारण भारत का पतन हुआ है ऐसी मिथ्या धारणा व भ्रम सामान्य लोगों में हुआ? लेकिन उसको (गलत धारणा को) बिल्कुल नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए जैन वीरों के चरित्र प्रकट करके अहिंसा तत्त्व की व्यवहारिकता स्पष्ट कर देना ही श्रेष्ठ है। इनको पढ़ने से पाठकों को जैन अहिंसा की सार्थकता और जैनों के वीर-पुरुषों का परिचय विदित होगा और इसी बात में इस रचना का महत्व अंकित है। लब्ध-प्रतिष्ठित कलाकार जैनेन्द्र जैन ने भी पौराणिक कथाएँ लिखी हैं। उनकी मर्मस्पर्शी मनोवैज्ञानिक भाषा-शैली से तो हिन्दी-साहित्य-जगत सुपरिचित है। कथा-साहित्य में एक नया मोड़ प्रदान करने वाले जैनेन्द्र जी ने जैन कथा साहित्य में भी अपनी प्रतिभा, उदात्त विचारधारा एवं भाव प्रवण भाषा-शैली के कारण एक अनोखा स्थान स्थापित कर लिया है। उनकी तात्विक विचारधारा जैन धर्म के सिद्धान्तों से प्रभावित है। कहानी कला की दृष्टि से भी उनकी 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, पृ० 102. 2. कामताप्रसाद जैन-'नवरत्न' की प्रस्तावना, पृ. 12.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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