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________________ 486 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य कहानियाँ पूर्ण सफल कही जा सकती हैं। कथा वस्तु की रोचकता, भावप्रवण कथोपकथन, विश्लेषणात्मक चरित्र-चित्रण, आन्तर्बाह्य प्रकृति वर्णन के साथ भावानुकूल भाषा-शैली से सर्वथा सुन्दर उनकी कथाएँ जैन साहित्य का जगमगाता अंश है। 'आपकी रचनाओं में शुद्ध साहित्यिक गुणों के अतिरिक्त विचारों और दार्शनिकता का गांभीर्य भी विद्यमान है। भावुक कथाकार होने के कारण जैनेन्द्र जी के विचारों में भावुकता का होना स्वाभाविक है। आपकी कथाओं में कला के दोनों तत्त्व-चित्रों का एक समूह और उन्हें अनुप्राणित करने वाला भावों का स्पष्ट स्पन्दन-विद्यमान है। भावों और चित्रों का ऐसा सुन्दर समन्वय जैनेन्द्र जी की कला में है, अन्यत्र कठिनाई से मिल सकेगा।' 'बाहुबलि' और 'विद्यत्वर' उनकी दो कथाएँ जैन कथा साहित्य की अमूल्य निधि कही जायेंगी। श्री बालचन्द्र जैन ने भी पौराणिक कथा वस्तु लेकर नवीन शैली में सुंदर कहानियाँ लिखी हैं, जो ‘आत्मसमर्पण' नामक कथा संग्रह में संग्रहीत हैं। पौराणिक कहानियों में लेखक ने चरित्र-चित्रण, दृश्यावलियों के अंकन एवं नूतन भाषा-शैली के द्वारा नई जान डाल दी है। पौराणिक आख्यानों को लेकर कथा ग्रन्थ लिखने वालों में बाबू कृष्णलाल वर्मा का नाम काफी महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध है। उन्होंने सती दमयन्ती, महासती सीता, सुरसुंदरी, रूप सुंदरी, खनक कुमार आदि पुस्तकें लिखी हैं। उनकी भाषा-शैली आधुनिक है। रोचक कथावस्तु को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करने की कुशलता उनमें विद्यमान है। उपयुक्त वातावरण, श्लिष्ट-तीव्र कथोपकथन एवं मार्मिक चरित्र-चित्रण के द्वारा कथा को जीवंत व स्वाभाविक बनाते हैं। उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालते हुए आचार्य नेमिचन्द्र शास्त्री लिखते हैं-'भाषा में स्निग्धता, कोमलता और माधुर्य तीनों गुण विद्यमान हैं। शैली सरस है, साथ ही संगठित, प्रवाहपूर्ण और सरल है। रोचकता और सजीवता इस कथा में विद्यमान है। पं. मूलचन्द जी-'वत्सल' की कथाओं में यथाशक्य आधुनिक भाषा-शैली का निर्वाह किया गया है, फिर भी पौराणिक-सती विषयक-कथा वस्तु होने से आधुनिक टेकनिक का निर्वाह सर्वत्र होना मुश्किल रहा है। 'सती रत्न' उनकी ऐसी पौराणिक कथाओं का संग्रह है। अयोध्याप्रसाद गोयलीय ने किवदंतियाँ, संस्मरण, आख्यान, चुटकुले 1. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, पृ. 90. 2. आचार्य नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य-परिशीलन, पृ. 87.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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