________________
आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
465
महल की सर्वोत्तम अटारी पर चारों ओर स्फटिक के जाली-बूटों वाले रेलिंग और वातायन है। बीचों-बीच वह स्फटिक का ही शयन कक्ष है, लगता है जैसे क्षीर समुद्र की तरंगों पर चन्द्रमा उतर आया है। फर्शों पर चारों ओर मरकत और इन्द्रनील मणि की शिलाएँ जड़ी हैं। कक्ष के द्वारों और खिड़कियों पर नीलमों के तोरण लटक रहे हैं, जिनकी मणि-घंटिकाएं हवा में हिल-हिल कर शीतल शब्द करती रहती है। उनके ऊपर सौरभ की लहरों से हल्के रेश्मी परदे हिल रहे हैं। कक्ष में एक ओर गवाक्ष के पास खटकर पद्मराग मणि का पर्यक विहग है। उस पर तुहिन-सी तरल मसहरी झूल रही है। उसके पट आज उठा दिये गये हैं। अन्दर फेनों-सी उभरती शय्या बिछी है। मीना सचित छतों में मणि-दीपों की झूमरें झूल रही हैं। एक ओर आकाश के टुकड़े-सा विशाल बिल्लोरी सिंहासन बिछा है। उस पर कांच के फूलों दुनी, सुख, स्पर्श, भसृण गद्दियाँ और तकिये लगे हैं। उसके आसपास उज्ज्वल मर्मर पाषाण के पूर्णाकार हंस-हंसिनी खड़े हैं, जिनमें नीले और पीले कमल तैर रहे हैं। कक्ष के बीचों-बीच पन्ने का एक विपुलाकार कल्पवृक्ष निर्मित है, जिसमें से इच्छानुसार कल घुमा देने पर अनेक सुगंधित जलों के रंग-बिरंगे सीकर झलकने लगते हैं। मणि-दीपों की प्रभा में वे सीकर इन्द्र धनुष की लहरें बन-बनकर जगत की नश्वरता का नृत्य रचते है। कक्ष के कोनों में सुंदर बारीक बालियों स्फटिकमय दीपाधार खड़े हैं, जिनमें सुगंधित तेलों के प्रदीप जल रहा है।' महल का मुग्धकारी वैभवी वर्णन तो आगे चलता रहता है, यहाँ तो केवल एक झांकी ही प्रस्तुत की गई है। वैसे ही महापराक्रमी, प्रभावी राजकुमार पवनंजय के 'अजितजय प्रासाद' की मोहनीय धीर गंभीरता और निर्वचनीयता अजेय है। पुत्र की एक-एक इच्छा को तृप्त करने का महाराज का निर्णय महल के प्रत्येक अंग-उपांग एवं विशिष्टताओं में मानो पूर्ण हो रहा है
___ यह है कुमार पवनंजय का 'अजितजय प्रासाद'। राजपुत्र के चिर दिन के सपनों को इस रूप में दिया है। अबोल बालपन से ही कुमार में एक जीगिषा जाग उठी थी-वह विजेता होगा। वय-विकास के साथ यह उत्कंठा, एक महत्वाकांक्षा का रूप लेती गई। ज्ञानवर्द्धन ने सृष्टि की विराटता का वातायन खोल दिया। युवा कुमार की विजयाकांक्षा सीमा से पार हो गई। यह मन ही मन सोचता। वह निखिलेश्वर होगा, वह तीर्थंकर होगा। + + + उसी के ठीक पीछे पादमूल में ही आ लगाई वह पहाड़ियों से भरा बीहड़ जंगल। किसी प्राचीर या 1. वीरेन्द्र जैन-मुक्तिदूत, पृ. 20, 21. 2. वही, पृ. 38.