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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 461 अक्षय धारा को मांस की इन क्षायक रेखाओं में नहीं बांधा जा सकता। और वह दिन दूर नहीं है, प्रहस्त! जब नाग-कन्याओं और गंधर्व-कन्याओं का लावण्य पवनंजय की चरण-धूलि बनने को तरस जायेगा। 'ठीक कह रहे हो पवन! अंजना इसे अपना सौभाग्य मानेगी। क्योंकि यह तो चरण धूलि बनने के पहले आदित्यपुर के भावि महाराज के भाल का तिलक बनने का नियोग लेकर आई है। इस कथोपकथन में एक ओर से पवनंजय का अहम्, राजसी सत्ता-स्वभाव, अवज्ञाभाव लक्षित है, तो दूसरी ओर मित्र प्रहस्त की श्रद्धा, अंजना के सहज सौभाग्य का विश्वास तथा मित्र के प्रति ममता और कल्याण-भाव दृष्टिगत होता है। ठीक उसी प्रकार निम्नलिखित संवाद में अंजना का दृढ़ विश्वास, कर्तव्य निष्ठा और गौरव झलकता है, तथा वसन्त माला की आशंका, सखी प्रेम हम महसूस कर सकते हैं ___ 'अंजन! कुमार पवनंजय प्रस्थान कर गये। अपने सैन्य को साथ लेकर वे अकेले ही चल दिये हैं-' बीन का तार जैसे टन्न-से अचानक टूट गया, भटकती हुई वह झंकार रोम-रोम में झनझना उठी। पता नहीं यह आघात कहाँ से आया। बेबूझ अपार विस्मय से अंजना की वे अबोध-आँखें वसन्त के चेहरे पर बिछ गईं। अपने बजूद से वह पूछ बैठी-'कारण?' 'ठीक कारण ज्ञात नहीं हो सका। पर एकाएक मध्यरात में महाराज प्रहलाद के पास सूचना पहुँची कि कुमार कल सूर्योदय के पहले अकेले ही प्रस्थान करेंगे, अपनी सेनाओं को उन्होंने कूच की आज्ञाएँ दे दी हैं। उसी समय अनुचर भेजकर महाराज ने कुमार को बुलवाया, पर वे अपने डेरे में नहीं थे। कारण कुछ गंभीर और असाधारण है। इस बार वे भी उनके मन की थाह न ले सके हैं और पूछने का साहस भी वे नहीं कर सके।' _ 'क्या पिता जी को यह संवाद मिल गया है वसन्त ?' हाँ, अभी जो अश्वारोहियों की टुकड़ी गई है, उसी में महाराज आदित्यपुर के महाराज प्रह्लाद के साथ कुमार को लौटा लाने गये हैं।' अंजना ने वक्ष में नि:श्वास दबा लिया। किसी अगम्य दूरी में दृष्टि अटकाये गंभीर स्वर में बोली ___ 'बांध कर में उन्हें नहीं रखना चाहँगी, बसन्त। आने को दिशाएँ खुली हैं उनके लिए। पर संयोग की रात जब लिखी होगी, तो दीपान्तर से उड़कर 1. श्री वीरेन्द्र जैन-मुक्ति जैन-34, पृ. 10.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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