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________________ 460 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य संख्या भी अत्यधिक नहीं है, वर्णनों की भरमार अवश्य काफी है। प्रमुख पात्रों में पवनंजय, अंजना, प्रहस्त, वसन्तमाला, राजा प्रह्लाद, रानी केतुमती, आदि का सुन्दर से सुन्दरतम् चरित्र चित्रण हो पाया है, तो गौण पात्रों में अंजना के माता-पिता, भाई, सखी, मामा हनूरूह, वरुण, रावण आदि का भी अच्छा परिचय दिया है। पवनंजय का पात्र कहीं-कहीं अच्छा उभरता है। वह वीर प्रतापी, तेजस्वी तो था, लेकिन अपने अहं, वहम तथा अविश्वास के कारण निर्दोष अंजना का त्याग कर एकाकीपन की पीड़ा भुगतता है, साथ ही अपनी क्षुद्रता का परिचय भी देता है। लेकिन अंत में पश्चाताप की आग में जलते हुए पवनंजय को परित्यक्ता अंजना की शरण में ही शांति प्राप्त होती है और नारी के प्राणों का स्पन्दन पाकर ही पवनंजय प्रकाश प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर अंजना का समस्त जीवन है एक सशक्त आदर्श का, त्याग एवं प्रेम का। उसके अनुपम तेज, सतीत्व-बल तथा प्रेम-पुंज के सामने पवनंजय का अंह झुकता है। "नारी के चरित्र का इतनी ऊँची और ऐसी अद्भुत कल्पना शायद ही कहीं हो। अंजना शरत् बाबू के ऊंचे-से ऊँचे स्त्री पात्र से ऊपर उठ गई है। अब तक के मानव-इतिहास में नारी पर मुक्ति मार्ग की बाधा होने का जो कलंक चला आया है, इस उपन्यास में लेखक ने उस कलंक का भाजन किया है। अंजना का आत्म समर्पण पुरुष के 'अहं' को गलाकर, उसके आत्म उद्धार का मार्ग शस्त करता है। अंजना का प्रेम निष्क्रिय आत्मक्षय नहीं है, वह है एक अनवरत साधना; कहें कि 'अनासक्त योग।" उपन्यासकार ने दो प्रमुख पात्रों के साथ सहायक पात्रों का भी सुन्दर चरित्रांकन किया है, जिनकी चर्चा हम पीछे कर चुके हैं। इसलिए कथावस्तु एवं चरित्र-चित्रण के सन्दर्भ में विस्तृत चर्चा अनावश्यक है। संवाद : कथावस्तु की रोचकता एवं पात्रों के चरित्र-चित्रण की तीव्रता-मार्मिकता में 'मुक्ति दूत' ने जितनी सफलता पाई है, उतनी ही अपने कथोपकथन में भी। जहाँ एक ओर छोटे-छोटे तीव्र, प्रश्नात्मक संवादों की विपुलता पाई जाती है, वहाँ लम्बे-लम्बे स्वगत कथन तथा उपदेशात्मक कथन भी काफी मात्रा में हैं। अधिक से अधिक काव्यात्मक सौन्दर्य और मानव व प्रकृति के अन्तर्बाह्य सौंदर्य को उद्घाटित करने वाले हैं। चरित्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालने का महत्वपूर्ण कार्य कथोपकथन करते हैं। एक उदाहरण द्रष्टव्य है-'प्रहस्त, संसार की कोई भी रूपराशि कुमार पवनंजय को नहीं बांध सकती। सौंदर्य की उस 1. द्रष्टव्य-लक्ष्मीचन्द्र जैन : मुक्ति दूत-का आमुख, पृ० 12.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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