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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
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जयदेव :
यदि आप कुछ समय पहले आ जाते तो अच्छा होता। सहज की विलासपुर के नरेश से भेंट हो जाती। मैं उन्हें अभी पहुँचा के आ रहा हूँ। बड़े सज्जन नरेश हैं। भूपसिंह :
विलासपुर नरेश के दर्शन तो मुझे कभी नहीं हुए, परन्तु पिता जी से उनकी बहुत प्रशंसा सुनी है। कहते हैं बड़े उदार हृदय, दृढ़-प्रतिज्ञ और पराक्रमी राजा हैं। खेद है कि मैं ऐसे अच्छे एकान्त अवसर में उनसे न मिल सका। अस्तु, पर यह तो कहिए कि वे आपकी इस एकान्त विद्या-कुटीर में आये कैसे?'
जबकि सुशीला, रेवती व चंद्रिका के संवादों से चपलता, मस्ती, हंसी-मजाक का वातावरण पैदा होने से उपन्यास को जीवंत बनाने में सहायता मिलती है। प्रारंभ में सुशीला के माता-पिता की बातचीत से सुशीला के गुणों का दिग्दर्शन हो जाता है, एवं जयदेव के गुणों की बारीकियाँ प्रस्फुटित होती
वातावरण :
इस उपन्यास में पं. गोपालदास जी ने प्राकृतिक वातावरण का सुन्दर चित्रण जगह-जगह पर किया है। प्रकृति के कोमल सौन्दर्य के साथ उनकी भीषणता, नीरवता, आदि का भी वर्णन किया है। मानव-जगत् की बाह्य सृष्टि का वर्णन यत्र-तत्र मिलता रहता है, लेकिन भीतरी वातावरण का वर्णन लेखक ने प्राचीन ढंग से किया है। पात्रों की सोच-विचार प्रक्रिया से उसकी उथल-पुथल, संघर्ष, ऊहापोह आदि का यहाँ नितान्त अभाव है, अतः मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से आन्तरिक जगत् के चित्रण को यहाँ स्थान नहीं मिला है। इसके साथ ही किसी समय विशेष की ऐतिहासिक विषय वस्तु न होकर भी राजा-महाराजा, राजकुमार-राजकुमारी, शत्रु, दूत, युद्ध आदि का वर्णन बाह्य रूप से राजसी वातावरण खड़ा कर देता है। लेखक ने राजकीय जासूसी, कपट, खटपटों तथा युद्धों का हूबहू चित्रण किया है लेकिन पूर्णतः ऐतिहासिक वातावरण का प्रभाव नहीं जम पाया है। सामाजिक दृष्टि से रीति-रिवाज, व्यवहार, बोल-चाल, रहन-सहन, धर्म आदि में भी यह विशेषता लक्षित नहीं होती, जिससे उपन्यास न शुद्ध सामाजिक रहता है और न राजकीय, बल्कि दोनों का मिश्र प्रभाव पाठक के चित्त पर पड़ता है। सबसे आकर्षक चीज इसमें प्राकृतिक रमणीयता का है। यह पहले उल्लेख कर दिया गया है। (विषय वस्तु 1. सुशीला-उपन्यास, पृ. 78.