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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 447 भी उपन्यास या कथा साहित्य की सफलता के लिए यह अत्यन्त आवश्यक रहता है कि कथोपकथन कहीं नीरस या अधिक लम्बे न हो जाने चाहिए। सरलता, मधुरता एवं प्रवाह भी अन्तर्गत रहने चाहिए। दैनिक जीवन में हम जिस प्रकार की बातचीत करते हैं, उन्हीं का संनिष्ठ अंकन होना चाहिए। लम्बे-लम्बे स्वकथनों व संवादों से यथाशक्ति बचना चाहिए, ताकि पाठक ऊब न जाय और फिजूल का समय बरबाद न हो। अधिक स्वकथनों से कथा प्रवाह में तथा चरित्र-विकास में बाधा पैदा होती है। अतः आवश्यक कथनों को ही सुंदर रूप से कथा के भीतर लेखक स्थान दे। अनर्गल, असम्बद्ध व विशृंखल संवाद कभी कथा के लिए उपकारक नहीं होते। लेखक को अपने विचार, उद्देश्य या सिद्धान्तों को संवादों के मध्य में प्रस्तुत करना युक्ति संगत नहीं होना चाहिए या वह अनधिकार चेष्टा कहलायेगी। इसीलिए अलोंबेट्स ने कहा है कि-"The use of question mark does not convert a passage into dialouge." (अर्थात् 'उद्धरण चिह्न लगा देने से ही कोई उक्ति कथोपकथन नहीं हो जाती।) देशकाल या वातावरण : उपन्यास की पूरी सृष्टि-कथावस्तु, पात्र व कथन सबको-अधिक सजीव सक्षम व सुसंगत बनाने के लिए देशकाल या बाह्य परिस्थितियों के चित्रण का महत्व काफी आंका जाता है। आधुनिक कथा-साहित्य में केवल बाह्य परिस्थिति का ही नहीं, वरन् प्रमुख पात्रों की आंतरिक परिस्थितियों का जीवंत अंकन भी अपेक्षित रहता है या आवश्यक-सा ही बन गया, कहीं-कहीं तो यह भीतरी वातावरण की मुखरता में बाह्य वातावरण बेचारा चुप-सा रह गया। वैसे देशकाल के अंतर्गत कहानी और उपन्यास के सभी बाह्य उपकरण जैसे आचार, विचार, रीति-नीति, रहन-सहन, प्राकृतिक-पीठिका और परिस्थिति आदि का समावेश होता है। सामाजिक परिस्थितियों के चित्रणों में सफलता का अंश कथाकार के वर्णनों की यथार्थता, सूक्ष्मता एवं प्रभावोत्पादकता के बल पर निर्भर रहता है। भौतिक वातावरण की कथा को अधिक मार्मिकता तथा कथा-पात्रों को सफलता मिलती है। कथावस्तु की पाश्चात् भूमिका का परिचय वातावरण की स्वाभाविक स्थिति से पाठक को प्राप्त हो जाना है। लेकिन बाह्य वातावरण को अधिक निरुद्देश्य स्थान देने से बचना चाहिए, ताकि निरर्थक वर्णनों से कथा वस्तु का प्रवाह अवरुद्ध न हो या वह समूचा नीरस न बन जाये। इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि वर्णनों को कथा में स्थान नहीं देना चाहिए। रोचक, जीवंत व कलात्मक वर्णनों से कथावस्तु, पात्र सभी में रमणीयता पैदा हो जाती है। वातावरण के सफल तथा मनोरम्य चित्रणों पर से तो कथा साहित्य का मूल्य
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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