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________________ 446 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य प्रत्यक्ष रूप से पाठकों को मिलता है। उपन्यास के प्रारंभिक युग में और बाद में प्रेमचन्द युग में भी उपन्यासकार प्रत्यक्षतः चरित्रांकन में सहायक होते थे, लेकिन आज के मनोवैज्ञानिक युग में लेखक विश्लेषण पद्धति से उनके भीतर प्राण-शक्ति संजोकर उसे जीवन के प्रांगण में आंख-मिचौली खेलने के लिए छोड़ देते हैं। उनकी अच्छाई-बुराई, आवेग, विवशता, यौन-कुठाएं सभी विश्लेषणात्मक ढंग से प्रस्तुत करते जाते हैं। अतः पाठक-पाठक के बीच कोई पर्दा नहीं। जीवन के घात-प्रतिघात में बहता हुआ पात्र स्वयं अपनी दुर्बलता-सबलता को अनावृत्त करता है, उजागर करता है। आजकल पात्रों के आदर्शवादी अंकन की अपेक्षा बिल्कुल यथार्थपरक अभिव्यक्ति पाठक व लेखक दोनों को अधिक सुगम, सुरेख व स्वाभाविक प्रतीत होती है। रुचि समय की अनुगामिनी होती है, अतः आधुनिक युग में चरित्र-चित्रण में काव्यों की काल्पनिक कला के बदले लोक-प्रतिबिंब को कथा-साहित्य की अनुभूति बनाने की वृत्ति को विशेष महत्व मिला है। आज के वातावरण में पात्रों की चरित्र-विकास पद्धति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह भी देखा जाता है कि उसके बाह्य विकास व व्यवहार के बदले उसके अन्तर्मन की यात्रा का अन्तर्द्वन्द्व अधिक सूक्ष्मता से अभिव्यक्त किया जाता है। पात्र की भीतरी उलझन और प्रवृत्तियों से विशेष परिचय प्राप्त होता है। अत: कथा वस्तु की ओर लेखक का ध्यान या आकर्षण कम रहता है। फिर भी कथा वस्तु का अपना पूर्ण महत्व कथा-साहित्य में रहता है, चाहे प्रस्तुत करने के ढंग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक व गति प्रेरक हैं, कथा वस्तु के घात-आघात व क्रियाशीलता से पात्र का व्यक्तित्व बनता-बिगड़ता है व पात्र की क्रियाएँ, चेष्टाएँ कथा वस्तु को जीवन्तता, सूक्ष्मता व गति प्रदान करता है। कथोपकथन : कथावस्तु को गतिशील तथा पात्रों के चरित्र-चित्रण में सहायक बनने का सौभाग्य कथोपकथन को अवश्य प्राप्त होता है। कथा साहित्य के किसी रूप में संवादों का महत्व कभी कम हुआ नहीं है और होगा भी नहीं। छोटे-छोटे लाक्षणिक, मार्मिक संवादों से न केवल कथा रोचक बनती है, बल्कि पाठक के साथ निकटता पैदा कर प्रमुख पात्रों की विशिष्टताओं पर प्रकाश भी डाला जाता है। आलोंबेट्स कथोपकथन की विशेषता के लिए उचित ही कहते हैं कि-Composition which produces the effect of human talk as nearly as possible the effect of conversation which is overheard.' fent 1. आलोंबेट्स-'The on writing of English', Siriz-1, p. 130.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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