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________________ 431 आधुनिक हिन्दी-जैन-काव्य का कला-सौष्ठव 431 'लोल-लहरों पर लिखने निर्वाण के मृद्गीत, ओ बीतराग पुनीत। 'मेरी जीवन साध' कविता में अलंकार के द्वारा भाषा में अपूर्व माधुर्य छलक उठता है परहित में रत रहूं निरन्तर, मनुज-मनुज में करूं न अन्तर। नस-नस में बह चले देश की प्रेमधार-निर्बाध मेरी जीवन साध॥ छन्द : ____ भाषा तथा अलंकार की भांति छंद योजना के क्षेत्र में भी हिन्दी जैन कवियों ने कोई नूतन प्रयोग न कर प्रबंध काव्यों में परंपरागत छंदों को ही अपनाया है। 'वर्धमान' महाकाव्य में वंशस्थ छंद का विपुल मात्रा में प्रयोग किया गया है। 'वीरायण' तुलसीदास जी के 'मानस' की दोहा-चौपाई शैली' में लिखा गया है। मुक्तकों में विविध राग-रागिनियों पर आधारित पदों की रचना की गई है। मुक्त छन्द का प्रयोग भी यत्र-तत्र स्वीकृत हुआ है। जैन कवियों ने संस्कृत छंदों के साथ प्राचीन छंदों का प्रयोग भी कुशलता से किया है। "जैन साहित्य में संस्कृत छन्द और पुरातन हिन्दी छन्दों और गीतों का प्रयोग आज अनेक जैन कवि कर रहे हैं। सर्वप्रथम हम महाकाव्यों में छन्द प्रयोग पर विचार करेंगे, तदनन्तर खण्डकाव्य एवं मुक्तक रचनाओं के अंतर्गत छन्द प्रयोग पर विचार होगा। 'वर्धमान' महाकाव्य में कवि अनूप शर्मा ने वंशस्थ, मन्दाक्रान्ता, मालिनी, इन्द्रवज्रा छन्दों का कुशलता से प्रयोग किया है। इनमें वंशस्थ छंद का सर्वोपरी स्थान है। कवि ने हरिऔध जी की परंपरा में संस्कृत छन्दों का प्रयोग कर अपनी छन्द-पटुता व विद्वता का परिचय दिया है। वैसे उन्होंने अपने खण्डकाव्य एवं मुक्तकों में धनाक्षरी आदि शब्दमेल छन्दों का प्रयोग अत्यन्त कुशलता से किया है। वंशस्थ का प्रयोग 'सिद्धार्थ व वर्धमान' में अपरिमेय मात्रा में कर उस पर अपनी सिद्धहस्तता व्यक्त कर दी है। 1936 योगों में से 1922 योगा केवल वंशस्थ के हैं। कवि ने महाकाव्य के शास्त्रीय नियम के अनुसार पूरे सर्ग में एक छन्द का प्रयोग तथा सर्गान्त में भिन्न छन्द प्रयोग का निर्वहण किया है। छन्द से महाकाव्य में बंधन के कारण प्रवाह की प्रभावान्विति बनी रहती है। क्योंकि इसमें छन्दों के द्वारा ही कथा वस्तु की श्रृंखला बनी रहती है। छन्द के द्वारा विशेष लय पैदा होने से काव्य में रोचकता बनी रहती है। फिर छन्द में तुक 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, भाग-2, पृ. 162.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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