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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
हैं। जब कि जीवनी - साहित्य का रूप पहले भी प्राप्त होता है, चाहे भाषा का माध्यम कोई भी हो। जीवनी और आत्मकथा को साहित्य के अन्तर्गत एक विशेष साहित्य - रूप का स्थान दिया जाता है, क्योंकि यह काल्पनिक कथा एवं सामान्य इतिहास से भिन्न चीज हैं। सामान्यतः 'किसी व्यक्ति विशेष के जीवन वृत्तान्त को जीवनी कहते हैं। 'जीवन चरित' कालान्तर में किंचित शुद्ध होकर 'जीवन चरित्र' बन गया और इसी का आधुनिक रूप 'जीवनी' अब सर्वाधिक प्रचलित है । जीवन चरित्र में दोनों शब्द को अलग करें तो जीवन के अन्तर्गत स्थूल - बाह्य घटनाओं को और चरित्र के अन्तर्गत चरित्र नायक की आन्तरिक विशेषताओं को ले सकते हैं। इस प्रकार जीवन चरित्र अथवा जीवनी में किसी मनुष्य के अन्तर्बाह्य दोनों ही जीवनी का लेखा होता है।" जीवनी में नायक के संपूर्ण जीवन या जीवन के यथेष्ट भाग की चर्चा होती है। जीवनी में जिन्दगी भर का हाल ले सकना संभव न होने पर उसका एक छोर स्फुट संस्मरण को माना जाता है और दूसरा छोर जन्म से लेकर मृत्यु तक के इतिहास से जीवनी को माना जा सकता है। वास्तविक जीवन वही है, जिसमें तथ्यों के अन्वेषण में और उन्हें प्रस्तुत करने में विशेष ध्यान रखना चाहिए और जीवनी प्रमाणिक तथा सम्यक् जानकारी पर आधारित होनी चाहिए। कथा साहित्य की भांति कल्पना की उड़ान को स्थान न होकर वास्तविकता को मृदु-रोचक बनाया जा सकता है।
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जीवनी :
जीवनी की यह महत्वपूर्ण विशेषता कही जायेगी कि जीवनी लेखक के लिए उचित है कि यह चरित नायक के जीवन को क्रमशः अन्वेषित एवं उद्घाटित करे। प्रारंभ से ही चरित नायक में महत्ता और विश्लेषणकता के दर्शन करने लगना अच्छा नहीं रहता, क्योंकि ऐसा करने से नायक का चरित्र स्वाभाविक रूप से निर्मित नहीं हो सकता । जीवनी और आत्मकथा साहित्य का ऐसा रूप है, जिसके द्वारा मनुष्य की जिज्ञासावृत्ति तृप्त होकर कुछ सीखना, जानना एवं जीवन को उर्ध्वगामी बनाने की चाह रखता है। वैसे जीवनी लिखना आत्मकथा की अपेक्षा थोड़ा सरल है, जबकि आत्मकथा में आपबीती को संपूर्ण सत्य एवं हार्दिकता के साथ जग समक्ष रखना हौसले के साथ निर्भीकता की अपेक्षा रखता है।
जीवन चरित लिखने की प्रणाली हमारे प्राचीन साहित्य में अत्यन्त कम
1. हिन्दी साहित्य कोश,
पृ० 305.