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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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विद्यार्थी जीवन, सामाजिक प्रणालियों, मानव और समाज का सम्बंध, भारतीय संस्कृति, विश्व शान्ति, श्रेय और प्रेय, सभ्यता आदि विविध विषयों पर उन्होंने लिखा है। इन सब में जैन धर्म के सिद्धान्त शान्ति, अहिंसा, सत्य व अपरिग्रह के तत्व की मूलतः विशेष चर्चा की है। निबंधकार की भाषा शुद्ध साहित्यिक के साथ चिंतनप्रधान है। मुनि जी के प्रवचन नयी पीढ़ी के तर्क और समस्याओं का मौलिक समाधान है। मानतवावादी दृष्टिकोण तथा उपयोगितावाद आपके चिन्तन के मूल स्वर हैं। अपने चिन्तन की गहराई द्वारा समस्याओं का मौलिक समाधान खोज निकालना आपकी प्रमुख विशेषता है। 'मानवता के पथ पर' पुस्तक में मुनि श्री ने जिन भावों का विवेचन किया है, वे वस्तुतः भौतिकवाद के सामने मानवतावादियों की ओर से मजबूत मोर्चा है। हिंसा और अहिंसा की, अनैतिकता और नैतिकता की, असत्य और सत्य की, भौतिकता और आध्यात्मकता की लड़ाई में मानवता प्रकाश-स्तंभ बनकर खड़ी है। वैसे ये उनके व्याख्यान हैं, लेकिन उनको निबंधों के रूप में प्रकाशित किया गया है और ये व्याख्यान स्वतंत्र निबंध की सत्ता रखने में सक्षम हैं। इनमें सांस्कृतिक एवं सामाजिक विषयों को उठाकर तार्किक रूप से चर्चा की गई है। 'सभ्यता का अभिशाप' नामक निबंध में यथार्थ ही लिखते हैं-'अर्थ रूपी इंजन हमको खींचे लिये जा रहा है और हम खींचे जा रहे हैं। अंधकार से परिपूर्ण गहरे गर्त की ओर, मानवता से दूर, पशुत्व से भी हीन किसी विकटतम पागलपन की ओर। राष्ट्रीय उत्थान के विषय में भी उन्होंने काफी विचारा है। नारी-विषयक निबंधों में नारी के गौरवमयी अतीत के साथ वर्तमान में नारी की आधुनिकता, उच्छृखलता, असहिष्णुता एवं भोग-विलास के पति आकर्षण की ओर इशारा किया है। लेखक का दृष्टिकोण विशाल व विचार गहरे हैं। कहीं भी दार्शनिकता की जाल में उनके शुद्ध विचार उलझे नहीं हैं, बल्कि सर्वत्र उनकी हार्दिकता दीखती है।
आधुनिक युगीन जैन निबंध साहित्य के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्टतः फलित होता है कि हिन्दी जैन साहित्य में निबंध साहित्य विपुल राशि में उपलब्ध होता है। अभी भी बहुत संभव है कि कितने ही नामी-अनामी निबंधकारों की रचनाएँ या उनके योगदान का यहाँ उल्लेख करना हमसे रह गया हो, जिसके लिए हमें अफसोस है। जीवनी, आत्मकथा व संस्मरण साहित्य : ___आत्मकथा व संस्मरण को हम सर्वथा आधुनिक युग की देन कह सकते 1. मुनि श्री लाभचंद्र जी-'मानवता के पथ पर', संपादकीय-कुमार सत्यभक्त,
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