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________________ 364 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य अनुभूतिमूलक वर्णन है। पुरातत्व विषयक पारिभाषिक शब्दावली को यथा-साध्य सरल भाषा में स्पष्ट करने का प्रशस्य प्रयत्न किया है। इन सभी स्थलों एवं खंडहरों का जीता-जागता चित्र खींचने के लिए लेखक को एकाधिक बार यात्रा करनी पड़ी है। दूसरे भाग में लिपि, ताम्र पत्रों के विषय में साहित्यिक चर्चा की गई है। अनेक बार यात्रा के परिणाम स्वरूप तीसरे भाग में यात्रा सम्बंधी रोचक अनुभवों एवं विशेषताओं का मधुर वर्णन किया है। कहीं पर भी विवरण का भाग इंगित नहीं होता। पावापुरी की यात्रा समाप्त कर नालंदा की ओर अग्रसर होने का वर्णन लेखक कितनी रोचक शैली में कहते हैं-'राजगृह से नालंदा के लिए दो मार्ग हैं। एक तो सड़क से और दूसरा पगडंडियों से। सड़क से नालंदा जाने में बहुत घूमकर जाना पड़ता है, परन्तु पगडंडियों से केवल 5 मील चलना पड़ता है। इसीलिए हम सड़क से दाहिनी ओर मुड़ने वाली पगडंडियों से चले, जो नदी, नालों और खेतों को पार करती आगे निकल जाती है। कहीं-कहीं यह मार्ग इस प्रकार लुप्त भी हो जाता है कि मार्गदर्शक के बिना सही रास्ते का पता पाना मुश्किल हो जाता है। मार्ग में कई सुन्दर गांव भी पड़ते हैं। प्रात:काल का समय होने से गांव और भी आकर्षित प्रतीत होते थे। नालंदा के आस-पास की ग्राम्य संस्कृति में घर कर गया है कि वहां के लोगों से उसका मार्ग पूछने पर उनका चेहरा खिल उठता है। सचमुच सौंदर्य और संस्कृति किसी अभिजात वर्ग की ही वस्तु नहीं है, बल्कि ग्राम्य जीवन में तो प्रकृति और संस्कृति का अद्भुत तादात्म्य हुआ है। उनके यात्रा-वर्णन को यात्रा संस्मरण का पृथक स्वरूप भी प्रदान कर सकते हैं। लेखक ने यात्रा दौरान भिन्न-भिन्न स्थलों का वर्णन कलात्मक ढंग से ऐतिहासिक तर्क एवं युक्तिसंगत प्रमाण देकर किया है। अतः उनकी उपादेयता व विश्वसनीयता अधिक बढ़ जाती है। साथ ही धार्मिक स्थलों के संदर्भ में प्रसिद्ध विद्वानों के अभिमतों को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से व्यक्त किया है। धर्म के साथ जिनको इतिहास और कला में रुचि हो उनके लिए यह पुस्तक अत्युत्तम सिद्ध होगी। पुरातत्व की खोज-बीन को कला के मधुर सहकार के साथ बड़े परिश्रमपूर्वक प्रस्तुत कर लेखक ने एक नवीन ही कृति हिन्दी जैन साहित्य को अर्पित की है। प्रो. खुशालचन्द्र गारावाला का नाम ऐतिहासिक निबंधकारों में आदर से लिया जाता है। 'कलिंगाधिपति खारवेल' और 'गोम्मट प्रतिष्ठापक' आपके महत्वपूर्ण निबंध हैं। आचारात्मक और दार्शनिक निबंध : हिन्दी जैन निबंध साहित्य में दार्शनिक निबंध लिखने वालों की संख्या 1. कांतिसागर जी : खोज की पगडंडियाँ, पृ. 129 (मेरी नालंदा भाषा)।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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