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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन- गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु सर्वाधिक है। इस प्रकार के निबंध विचार प्रधान होने के साथ वर्णन प्रधान भी होते हैं। सभी निबंधकारों का परिचय देना कठिन होने से प्रमुख निबंधकारों का परिचय पर्याप्त होगा। आचार प्रधान निबंधों से जैन समाज प्रायः परिचित होता है, क्योंकि अपने धर्म की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक जैन परिवार दार्शनिक ग्रन्थों के अध्ययन को महत्व देता है। 365 दार्शनिक विचार प्रधान निबंध लिखनेवालों में प्रज्ञा चक्षु पं० सुखलाल जी संघवी का स्थान मूर्धन्य है । 'योगदर्शन' और 'योगविशंतिका 'प्रमाणमीमांसा' आदि में दर्शन और इतिहास दोनों के विवेचन में तुलनात्मक शैली दिखाई पड़ती है। जैन साहित्य की प्रगति', 'भगवान महावीर का आदर्श जीवन', एवं 'चार तीर्थंकर' जैसी इतिहास व कथा - साहित्य की पुस्तक में भी ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं का पूर्ण ख्याल रखा है। दार्शनिक निबंधों के अतिरिक्त सांस्कृतिक निबंध भी आपने लिखे हैं, जिनकी भाषा परिमार्जित एवं शैली प्रवाहपूर्ण है। भाषा की चुस्तता के साथ थोड़े में बहुत कुछ प्रतिपादित करने की संश्लिष्ट शैली है। जैन दर्शन के साथ बौद्ध दर्शन के भी मर्मज्ञ ज्ञाता है । प्रज्ञा चक्षु होने पर भी मननशीलता, निरन्तर अध्यवसाय, संशोधन की उत्कट लगन, अपरिमित सर्जन शक्ति से पंडित जी ने हिन्दी व गुजराती साहित्य को गौरवान्वित किया है। अभी हाल में ही उनके देहावसान से न कैवल जैन समाज व साहित्य बल्कि पूरा भारत व हिन्दी साहित्य एक महान तत्वचिंतक, विद्वान साहित्यकार और मार्गदर्शक वंचित रह गया। ये अपने आपमें एक जीती-जागती ज्ञान की संस्था से थे। उनकी साहित्यिक विशेषता के संदर्भ में डा० नेमिचन्द्र जी लिखते हैं- " आपकी शैली में मननशीलता, स्पष्टता, तर्कपटुता और बहुभिज्ञता विद्यमान है। दर्शन के कठिन सिद्धान्तों को बड़े ही सरल और रोचक ढंग से आप प्रतिपादित करते हैं। " - पं० शीतलप्रसाद जी इस काल से पथ-प्रदर्शक निबंधकार के रूप में सम्मान के अधिकारी हैं। आपने इतनी विपुल संख्या में लिखा है कि इन सबके संकलन से जैन पुस्तकालय खड़ा हो सकता है। हिन्दी साहित्य में पं० राहुल सांस्कृत्यायन की तरह नियमित कुछ-न-कुछ लिखते रहने की वृत्ति पंडित जी में भी विद्यमान थी। दर्शन और इतिहास दोनों ही विषय पर उन्होंने विपुल मात्रा में निबंध लिखे हैं। दर्शन का ऐसा कोई विषय नहीं, जो आपकी कलम या नजर से बच पाया हो। निबंधों की तरह यदि आप आध्यात्मिक उपन्यास-क्षेत्र में कलम चलाते तो अवश्य हिन्दी जैन उपन्यास साहित्य का भंडार भर जाता । बहुमुखी प्रतिभा का उपयोग साहित्य-सृजन में अवश्य किया, लेकिन सभी को
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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