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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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की भाषा में रोचकता काफी है। संवाद भी छोटे-छोटे एवं कथा को गति देने वाले हैं। कहीं-कहीं अंग्रेजी के शब्दों से युक्त शुद्ध साहित्यिक भाषा है।
भगवत् जी के सात अहिंसा पूर्ण एकांकियों का संग्रह 'बलि जो चढी नहीं' भी सुन्दर भाषा-शैली में लिखा गया है। इसमें धार्मिक, पौराणिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय कथानक युक्त एकांकियों को लेखक ने पूर्णतः अभिनयात्मक रूप प्रदान किया है। जैन साहित्य के भण्डार की अभिवृद्धि करने में भगवत् जैन का योगदान प्रशंसनीय कहा जायेगा। 16 दृश्यों के 'दहेज के दुःखद परिणाम' नाटक में पं. ज्ञानचन्द्र जैन ने हास्य एवं व्यंग्य के द्वारा समाज में पनप रही दहेज की विषम-भयंकर फलगामी प्रथा पर प्रकाश डाला गया है। इस सामाजिक नाटक में दहेज के कारण दु:खद परिणामों की ओर अंगुलि-निर्देश किया गया है। नवयुवक विजय अपने दहेज लोभी बाप सेठ धनपाल की इच्छा के विरुद्ध जाकर बिना दहेज लिये ही सुशील लड़की से शादी करने का फैसला कर लेता है और अपने निर्णय में दृढ़ भी रहता है। धन की अपेक्षा योग्य संस्कार व सुशीलता को वह प्रमुखता देता है। विजय की मुख्य कथा के साथ दहेज लेकर बेटे की शादी करने वाले ससुर तथा बेटे की बुरी दशा का वर्णन करने वाली कथा भी साथ चलती है। छोटे से नाटक में छोटे-छोटे दृश्यों में लेखक ने काफी कुशलता से सामाजिक बुराइयों पर व्यंग्यात्मक शैली में प्रकाश डाला है। कथोपकथन की भाषा सरल है तथा बीच में कहीं गीत या लम्बे स्वगत कथन नहीं आने से रोचकता बनी रही है एवं कथा का प्रवाह विशृंखलित होने पर काफी प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है।
नंदलाल जैन ने तेरह अंकों में विभाजित अहिंसा प्रधान सामाजिक नाटक 'भारत के सपूत' लिखा है। समाज में विधवा, गरीब एवं अनाथ बच्चों की करुण दशा पर प्रकाश डाला गया है। समाज सुधारक रमाकान्त और उसका मित्र मनोहर दोनों समाज में फैली बदियों को दूर करने की कोशिश करते हैं। एक ओर गरीब असहायक दीनानाथ है, तो दूसरी ओर धनिक लोभी अत्याचारी सेठ धनपाल है। सेठ जी के इकलौते बेटे को सांप डंस जाता है, तो उसकी आँखें खुल जाती हैं। शेठ और शेठानी की हैजे में मौत हो जाती है। अतः वे अपनी संपत्ति भारतवर्षीय अनाथाश्रम को देने जाते हैं। इस आश्रम के पंडित जी गरीब अनाथ बच्चों, विधवाओं आदि की तन-मन-धन से सेवा करते हैं। मनोहर इसी आश्रम में पल-पोसकर बड़ा हुआ है। सामान्य आश्रम से यह भिन्न प्रकार की आदर्शात्मक संस्था है। इसकी अच्छाई एवं सुव्यवस्था की पात्रों द्वारा बार-बार दुहाई दिलवाना कुछ अस्वाभाविक भी प्रतीत होता है। गुण्डों के चंगुल