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________________ 352 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य समाज-सुधार के प्रति अमीरों का विद्रोहात्मक व्यवहार आदि का दिग्दर्शन कराया गया है। लक्ष्मी की चंचलता व माया का मोहक रूप दिखाकर लेखक ने मानव-हृदय को धन के अहं से नहीं, बल्कि मानवता और करुणा से प्रकाशित करने का संदेश व्यक्त किया है। मुख्य कथा के साथ गृह-कलह, दहेज की निर्दय प्रथा को अंकित करने वाली अवान्तर कथाएं भी साथ चलती हैं, जो दर्शक को रस-विभोर बना देती हैं। भगवत् जी का यह सुन्दर नाटक है। 'भाग्य' उनका पौराणिक कथानक से युक्त नाटक है जो पूर्णतः अभिनय योग्य है। नाटककार ने रंगमंचीय बनाने का काफी ख्याल रखा है। साज-सज्जा, अभिनय, रंग, वेशभूषा आदि के विषय में आवश्यक सूचनाएँ दी हैं। नाटककार का आग्रह है कि-'जहाँ तक हुआ है, उसे सार्वजनिक बनाने का प्रयत्न किया है। कथानक को प्रायः सभी घटनाएँ देने की चेष्टा की है, किन्तु स्टेज करने वालों की सुविधा, असुविधा का ध्यान पहले रखा है। + + + + इसी तरह कम से कम पात्र, चुने हुए आधुनिक ढंग के संवाद और थोड़े समय में समाप्त हो सकने योग्य संक्षिप्त प्लोट आदि उन सभी बातों को पहले कुछ सोचा, बाद में लिखा गया। साथ ही, कुछ वे बातें भी शायद आपको इसमें मिल सकें, जो नाटक-साहित्य की कसौटी पर कसी जाया करती हैं। सही है कि आज इस ढंग के नाटक लिखने का चलन कम हो गया है, यह पुरानी पारसी कम्पनियों की देन है। लेकिन यथार्थवाद पा रापथ लेकर यह कहा सकता है कि भले ही इस शैली को साहित्यिक न कहा जाय, किन्तु स्टेज पर यह जो प्रभाव छोड़ती हैं, वह मननशील साहित्यिक शैली की नाटिकाएं नहीं। लेखक ने प्रारंभ में ही 'फ्लेश-अंक' की टेकनिक का प्रयोग किया है, जो आधुनिक साहित्य की विशेषता कही जायेगी। ___नाटककार ने पौराणिक कथानक के बीच में भी आधुनिक विचारधारा का संनियोजन सुंदर रूप से किया है। अहिंसा और न्याय के संदर्भ में अच्छे विचार प्रस्तुत किये हैं। जब धवलराय को सजा देने के लिए भूमण्डल राजा कहता है, तब श्रीपाल उसे मुक्त करके क्षमा करने को कहते हैं। वे कहते हैं-'तो क्या महाराज का यह ख्याल है कि बुरों को बुराई के रास्ते पर ही ढकेलते रहना समझदारी है। सच तो यह है कि इसी रवैये पर बुरों की तादाद बढ़ती है। उन्हें भी आज़ादी के साथ भलाई का रस चखने दिया जाए , तो सांप का दिल भी उसके शरीर की तरह मुलायम बनाया जा सकता है।' भगवत् जी 1. भगवत जैन-'भाग्य' नाटिका, भूमिका, पृ. 4. 2. भगवत जैन-'भाग्य' नाटक, पृ. 113.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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