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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन- गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु तरह से विस्तारपूर्वक खिलाया गया है कि पहले के समय में श्री भविष्यदत्त जैसे वैश्य पुत्र कैसे बलवान और गुणवान होते थे, जो अपनी बुद्धि और भुजबल राजाओं तक को युद्ध में परास्त करके और उनकी कन्याओं से शादी करके स्वयं राज्य किया करते थे। + + + इस नाटक को किस्सा या कहानी समझ कर इसका अभिनय नहीं करना चाहिए, बल्कि जैन शास्त्र जानकर इसको विनयपूर्वक पढ़ना चाहिए, क्योंकि इसमें श्री जैन शास्त्र का रहस्य दिखाया गया है।' इस नाटक का नाटककार के कथनानुसार ऐतिहासिक एवं पौराणिक आधार प्राप्त है। आदि पुराण व भविष्यदत्त चरित्र आदि जैन शास्त्र में पोदनपुर नगर अफगानिस्तान या गन्धार देश की तरफ था, ऐसा उल्लेख है, पोदनपुर की तरह हस्तनापुर - हस्तिनापुर नामक शहर, जो आज तो एक वीरान जगह बन गया है। उस समय बहुत चहल-पहल वाला शहर था। इस शहर में राजा पहमाल राज्य करता था, धनदत्त बहुत बड़ा सेठ और हरिबल एक श्रीमंत जैन महाजन था, जिसकी स्त्री का नाम लक्ष्मी देवी था। उनकी बेटी कमलश्री गुणवान व रूपवान थी, जो इस नाटक की मुख्य पात्री है। उसकी शादी इसी शहर में धनदेव नामक श्रेष्ठि से हुई थी और भविष्यदत्त नामक पुत्र हुआ। 345 कथानक : संस्कारी व सुन्दर कमल श्री की शादी धनदेव से होने के बाद बहुत समय तक सन्तान का अभाव खटकने लगा। संसार से उदास होकर वह मुनिराज से दीक्षा लेने को उद्यत हो जाती है, लेकिन मुनिराज ने गर्भिनी जानकर उसे दीक्षा न दी। गर्भ की बात जानकर कमलश्री अत्यन्त प्रसन्न हुई । समय पर भविष्यदत्त नामक पुत्र को जन्म दिया। कुछ समय बाद धनदेव धनदत्त सेठ की पुत्री सुरूपा के सौन्दर्य में आसक्त हो गया और उसके साथ विवाह कर कमलश्री को पीहर भेज दिया। सुरूपा को बन्धुदत्त नामक पुत्र हुआ। अब विमाता के दुर्व्यवहार से असंतुष्ट भविष्यदत्त ननिहाल चला गया। उधर सुरूपा के अधिक लाड़-प्यार से बन्धुदत्त बिगड़ गया। बड़े होने पर भविष्यदत्त माँ की इजाजत लेकर व्यापार करने के लिए चलता है, बन्धुदत्त भी साथ में जाता है। मार्ग में मैनागिरि पर्वत पर भविष्यदत्त को धोखा देकर छोड़ दिया गया और स्वयं जहाजों को लेकर चला गया । यहाँ भविष्यदत्त को काफी कष्ट सहने पड़े और भाग्यवश तिलकपुर पट्टन पहुँच कर तिलकासुंदरी नामक राजकन्या से उसका विवाह हुआ। उधर बन्धुदत्त का जहाज चोरों ने लूट लिया। भविष्यदत्त तिलका के साथ हस्तिनापुर लौट रहा था कि मार्ग में दयनीय दशा में बन्धुदत्त भी आ मिला। भविष्य दत्त ने उसे सान्त्वना दी और साथ ले लिया। दुर्भाग्यवश तिलकासुन्दरी की मुद्रिका
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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