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________________ 346 आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य लाने के लिए जहाज से उतरे हुए भविष्यदत्त को पुनः धोखा देकर जहाज को आगे बढ़वा कर तिलका सुंदरी को हथियाने की कुचेष्टा करता है। मोहान्ध होकर उस पर बलात्कार करना भी चाहता है, लेकिन उसके दिव्य तेज के समक्ष उसे पराजित होना पड़ा। बन्धुदत्त अपार संपत्ति एवं सुंदर कन्या को लेकर अब नगर वापस लौटा तो सारे नगर में खबर फैल गई। सुरूपा पुत्र के वैभव एवं बहू को देखकर प्रसन्न हो गई। तिलका के साथ बन्धुदत्त के विवाह का समाचार चारों और फैल गया। उधर मुद्रिका लेकर जब किनारे पर पहुँचकर भविष्यदत्त ने जहाज को न देखा तो निराश होता है। जैसे-तैसे हस्तिनापुर पहुँच कर अपनी माँ से मिलाप होता है। दुःखी माँ कमलश्री पुत्र को सकुशल देख प्रसन्न होती है। सारी घटना सुन बेचारी दुःखी होती है। सारे नगर में बन्धुदत्त के दुराचार का समाचार फैल जाता है। दुःखी एवं निराश तिलका को पति के पुनरागमन से खुशी हुई। राज दरबार में सुरूपा एवं बन्धुदत्त का मुँह काला हो गया। भविष्यदत्त और तिलका सुंदरी कमलश्री के साथ सुख-चैन से रहने लगे और धनदेव को सती कमलश्री से क्षमा मांगनी पड़ी। बन्धुदत्त ने कोपित होकर पोदनपुर के युवराज के समीप पहुंच कर गजपुर के महाराज की कन्या से शादी करने के लिए प्रेरित किया। लेकिन गजपुर के राजा ने अपनी कन्या सुमता के लिए भविष्यदत्त को चुन लिया था। अतः दोनों राजाओं में युद्ध हुआ । भविष्यदत्त ने सेनापति पद पर प्रतिष्ठित होकर अतीव वीरता से लड़ाई कर विजयलक्ष्मी को प्राप्त किया। सुमता की शादी आनंदोल्लास के साथ भविष्यदत्त के साथ संपन्न हुई। तिलका सुंदरी पटरानी हुई। ' इस नाटक में वातावरण की सृष्टि इतने गंभीर एवं सजीव रूप में की गई है कि अतीत हमारे सामने आकर उपस्थित हो जाता है। धोखा और कपट नीति सदा असफल रहती है, यह इस नाटक से स्पष्ट है। कथोपकथन स्वाभाविक बन पड़ा है। चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह नाटक सुरुचिपूर्ण और स्वाभाविक है। इस नाटक की शैली पुरातन है। भाषा उर्दू मिश्रित है तथा एकाध जगह अस्वाभाविकता भी प्रतीत होती है।" गजल, शेर-शायरी और कव्वालियों में प्रायः संवाद चलते रहते हैं। नाटककार पंजाब के होने से उर्दू शब्दों की भरमार है, जैसे- याराना, जहूर, शराब, हसद, आलप्रभ, बदजुबानी बुव्ज़कीना आदि-साथ ही थरमोमिटर जैसे अंग्रेजी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। पद्यात्मक संवाद का एक उदाहरण द्रव्टव्य है-तब भविष्यदत्त अपने भाई की चालाकी देखकर दु:खी होता है, तो सोचता है 1. डा॰ नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 117.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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