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________________ 344 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य न्यामत सिंह के नाटक : न्यामत सिंह ने सती कमलश्री, सती विजयासुंदरी, सती मैनासुंदरी, श्रीपाल नाटक आदि अनेक नाटकों की रचना की है, जिसमें जैन जगत् के प्रसिद्ध चरित्रों की प्रसिद्ध कथा-वस्तु ली गई है। इनके प्रायः सभी नाटकों की कथा-वस्तु भाषा-शैली, संवाद शैली एक-सी है। प्राचीन कथावस्तु को आधुनिक साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत करके नाट्य-साहित्य के प्रारंभिक काल के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है। इन नाटकों की नींव में जैन धर्म का कोई न कोई सिद्धान्त या विचारधारा रही है। देशकाल एवं वातावरण को विशेष महत्व नहीं दिया गया. है। उनके नाटकों का अभ्यास आधुनिक युग के नाटकों के परिप्रेक्ष्य में नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि जिस समय से नाटक लिखे गये थे, तब आधुनिक नाटकों का प्रादुर्भाव तो हो चुका था, लेकिन पाश्चात्य नाट्य-साहित्य की टेकनीक व विचारधारा का विशेष प्रभाव दृष्टिगत नहीं हुआ था। उस समय पारसी थियेट्रीकल कंपनी के सस्ते मनोरंजक नाटकों की काफी धूम मची थी। अतः संभव है कि न्यामतसिंह के नाटकों पर भी उसका प्रभाव पड़ा हो और संवादों में भद्दापन, हंसी-मजाक, ठिठोली तथा शेर-शायरी गजल में वार्तालाप चलता हो। पारसी कंपनी के नाटकों को ग्रामीण व अशिक्षित जनता विशेष पसंद करती थी लेकिन शिक्षित जनता व साहित्यकार ऐसे नाटकों से दु:खी होते थे और साहित्यिक नाटकों की रचना की और भारतेन्दु जी व उनकी मण्डली विशेष प्रवृत्त हुई व उनका रंगमंच पर सफल, शिष्ट अभिनय भी करने लगे। राधेश्याम कथावाचक, प्रतापनारायण 'बेताव', 'आगाह' आदि नाटककार पारसी रंगमंच के लिए विशेषतः नाटक लिखते थे और पद्यमय संवाद तथा अंग्रेजी शब्दों का प्राचुर्य इन नाटकों में विशेष रहता था। न्यामत के नाटकों में भी ये विशेषताएँ देखी जाती हैं। पद्य में संवाद तो ठीक है लेकिन प्राचीन वातावरण के अनुकूल अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग मेल नहीं खाता। वातावरण की गरिमा एवं स्वाभाविकता का परिपालन नहीं होता। अब उनके कुछ नाटकों के विषय में विचार किया जायेगा। सती कमलश्री नाटक : यह धार्मिक नाटक अभिनय योग्य है। स्त्री शिक्षा, धर्म परायणता, साहिष्णुता, पवित्रता एवं दान धर्मादि सदगुणों का जिक्र कथावस्तु के बीच-बीच में किया गया है। लेखक के शब्दों में ही-'इसमें मौके-मौके पर धर्म की शिक्षा और गृहस्थ नीति की शिक्षा कविता के द्वारा अच्छी तरह से दर्शाई गई है। जिसकी आजकल बड़ी आवश्यकता है। इस नाटक में इस बात को भी अच्छी
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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