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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
भाई को धर्म रक्षा हेतु गड्ढे में छिपा दिया और स्वयं ने सैनिकों का सामना करते हुए प्राण दे दिये। आगे जाकर थोड़े ही समय में अकलंक देव प्रसिद्ध जैन विद्वान हुए । बौद्ध विद्वानों को अपनी प्रतिभा एवं अकाट्य तर्कशक्ति से परास्त करते रहे, साथ में ही महारानी मदनवेगा - जो जैन धर्मी थी, से भी जैन धर्म के प्रसार में काफी सहायता मिलती रही। एक बार मदनवेगा रानी रथोत्सव करना चाहती थी, लेकिन इसमें राज्य के बौद्ध गुरु विघ्न रूप थे। उन्होंने कहा कि किसी जैन विद्वान से वाद-विवाद में परास्त होने के बाद ही जैन रथोत्सव हो सकेगा, अन्यथा नहीं। रानी राजगुरु के इस आदेश से चिंतित रहने लगी। उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया। स्वप्न में चकेश्वरी देवी ने सांत्वना देकर अकलंक देव को बुलाने का आदेश दिया। संयोगवशात् दूसरे दिन अकलंक देव सभा में आये और बौद्ध गुरु से शास्त्रार्थ करने लगे। तीन दिन तक बौद्ध गुरु के न हारने से अकलंक देव को चिंता होने लगी और उन्होंने चक्रेश्वरी देवी की आराधना करके समस्या का हल पूछा, तो देवी ने बताया कि पर्दे के भीतर बौद्ध गुरु के बदले बौद्धों की देवी तारादेवी बोल रही है, अतः दोबारा प्रश्न पूछने पर देवी चुप हो जायेगी। देवी ने बौद्ध राज गुरु के पराजय के अनेक और भी कारण बतलाये। दूसरे दिन शास्त्रार्थ में राजगुरु का पराजय हुआ और धूमधाम से रानी का रथोत्सव निकाला गया।
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इस नाटक में मूल कथानक को छोड़कर व्यर्थ प्रसंगों को नहीं लिया गया है । तीन अंक के इस नाटक के प्रारंभ में मंगलाचरण, सूत्रधार, नटी का आगमन होता है, दृश्य - परिवर्तन भी यथायोग्य हुए हैं। शैली प्राचीन होने पर भी कथोपकथन तथा पात्रों का चरित्र चित्रण अच्छा हुआ है। इसी कथा को लेकर पं० मक्खनलाल दिल्ली वाले ने भी 'अकलंक' नाटक लिखा है। उनका नाटक भाव - भाषा की दृष्टि से साधारण होते हुए अभिनयात्मक है।
जैनेन्द्र किशोर आरावाला का नाम नाटककार की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने बहुत-से नाटकों का प्रणयन उस समय किया, जिस समय हिन्दी नाटक साहित्य में भी नाटकों का प्रारंभ हो रहा था। आपने 1 दर्जन से भी ज्यादा नाटकों की रचना कर हिन्दी जैन नाट्य साहित्य की श्रीवृद्धि करने में सहयोग दिया है। वैसे इनके नाटकों की शैली प्राचीन है, फिर भी इनका काफी महत्व है। आरा में आपके प्रयत्नों से एक नाटक मण्डली की स्थापना की गई थी, जिसके द्वारा आपके नाटकों का अभिनय किया जाता था। आप स्वयं विदूषक का अभिनय करते थे। आपकी मृत्यु के बाद यह मंडली बन्द हो गई थी। आपके नाटकों में प्रमुख मनोरमा देवी, अंजना सुंदरी, द्रोपदी, प्रद्युम्न