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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 337 इसी प्रकार नाटक के बीच-बीच में आती हुई कविता भी सुन्दर है, जिसे पढ़कर संस्कृत के प्रसिद्ध सुभाषितों की सहसा याद हो आती है। क्षमा अपनी बेटी शान्ति से कहती हैं कि विधाता के प्रतिकूल होने से सुख की अपेक्षा दुःख विशेष प्राप्त होता है-यथा 'जानकी-हरन वन रघुपति भवन ओ, भरत नरायन को बनचर के बान सों। वारिधि को बन्धन, मयंक अंक क्षयीरोग, शंकर की वृत्ति सुनि भिक्षाटन दान सों, कर्ण जैसे बलवान कन्या के गर्भ आये, बिलखे वन पाण्डु कुपुत्र जुआ के विधान सों। ऐसी ऐसी बातें लोक जहां तहां बेटी, विधि की विचित्रता विचार देख ज्ञान सों।" आध्यात्मिक कथावस्तु होने से नाटक में दार्शनिक तत्वों का विवेचन होना स्वाभाविक है, लेकिन सुन्दर भाव, रोचक भाषा एवं जीवनोत्कर्ष के लिए लाभप्रद-विचारों से युक्त होने के कारण नाटक सुन्दर रहा है। अकलंक नाटक : इसमें प्राचीन समय के अकलंक व निकलंक नाम दो जैन धर्म उद्धारक त्यागी भाइयों की कथा है। निकलंक नामक छोटे भाई ने धर्म रक्षा हेतु अपने प्राण की आहुति देकर बड़े भाई अकलंक की रक्षा की। महाराज पुरुषोत्तम के इन दोनों पुत्रों ने बचपन से ही अष्टाह्निका पर्वत पर ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेकर जैन धर्म की पताका फहराने का निश्चय कर लिया था। अतएव, उम्र लायक होने पर दोनों शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने के लिए बौद्ध गुरु के पास चले क्योंकि उस समय बौद्ध धर्म का अत्यन्त बोलबाला था तथा अन्य धर्मों का प्रभाव लुप्त प्रायः हो रहा था। अत: दोनों बौद्ध पाठशाला में लुक-छिपकर अध्ययन करने लगे। एक दिन इन्होंने बौद्ध गुरु का पाठ अशुद्ध होने पर उसको चुपचाप शुद्ध कर दिया। शाला के बाहर घूमते हुए गुरु ने बहुत माथा-पच्ची के बाद लौटकर भीतर देखा तो अशुद्ध पाठ शुद्ध है तो विचारने पर महसूस हुआ कि अवश्य इनमें कोई जैन है, अन्यथा सिवा जैन इसे कोई शुद्ध नहीं कर पाते। जैन शिष्य को पकड़ने के लिए अनेक प्रकार के षडयन्त्र किये गये जिसमें अकलंक-निकलंक पकड़े गये। उन्हें कारागृह में बन्द कर दिया गया। प्रातः काल ही दोनों कोध प्राण दण्ड मिलने वाला था। अतः रात में ही वे किसी तरह भाग निकले। लेकिन राजा के सिपाहियों ने उनका पीछा किया, अत: छोटे भाई ने बड़े विद्वान
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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