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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 339 चरित और श्रीपाल चरित के अतिरिक्त सोमासती और कृपणदास से प्रहसन है और 'कलि कोतुक पद्य-बद्ध रचना है, जिस पर उर्दू का प्रभाव अत्यधिक हो आए प्रहसनों में 'कृपणदास' व 'राम रस' में जीवन के उत्थान-पतन की विवेचना करते हुए कुसंगति से सर्वनाश की ओर इशारा किया गया है। आपके प्रायः नाटक अप्रकाशित हैं और आरा निवासी श्री राजेन्द्र प्रसाद जी के पास सुरक्षित है। पौराणिक उपाख्यानों को लेखक ने अपनी कल्पना द्वारा पर्याप्त सरस और हृदय ग्राह्य बनाने का प्रयास किया है। टेकनीक की दृष्टि से यद्यपि इन नाटकों में लेखक को पूरी सफलता नहीं मिल सकी है, तो भी इनका सम्बंध रंगमंच से है। कथा विकास में नाटकोचित उतार-चढ़ाव विद्यमान है। वह लेखक की कला-विज्ञता का परिचायक है। इनके सभी नाटकों का आधार सांस्कृतिक चेतना है। जैन संस्कृति के प्रति लेखक की गहन आस्था है। इसलिए उसने उन्हीं मार्मिक आख्यानों को अपनाया है, जो जैन-संस्कृति की महत्ता प्रकट कर सकते महेन्द्रकुमार : पं० अर्जुनलाल शेठी लिखित इस काल्पनिक नाटक की कथावस्तु का आधार सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय तत्व है। इस नाटक में गृह एवं समाज के वास्तविक चित्र मिलते हैं, जिसमें यह अभिव्यक्त किया गया है कि शराब के बुरे व्यसन से धनपतियों समाज को बरबाद कर देते हैं एवं जुआ तथा सट्टा आदि में फंसकर सपरिवार तबाह हो जाता है। पूंजीपतियों का मनमाना व्यवहार, दहेज की भयानकता, स्त्रियों की कटुता आदि सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डाला गया है। इस नाटक में पात्रों की संख्या भी काफी है। तथा पात्रानुरूप भाषा के प्रयोग के कारण खिचड़ी-सी बन गई है। लेखक का लक्ष्य सामाजिक बुराइयों को व्यक्त कर लोक-शिक्षा देने का होने से घटनाएं श्रृंखलित नहीं हैं। कथा-वस्तु : महेन्द्र कुमार सेठ सुमेरुचन्द्र का छोटा भाई है। सेठ सुमेरुचन्द्र की पत्नी कर्कशा एवं कठोर-हृदया है, जिसे अपना देवर महेन्द्रकुमार फूटी आँखों सुहाता नहीं है। वह प्रतिदिन अपने पति से शिकायत करती रहती है और सेठ जी पत्नी की बातों में विश्वास कर अपने भाई को डांटता ही रहता है। भाई-भाभी की रोज-बरोज की झिड़कियों व कलह से त्रस्त होकर महेन्द्र परदेश जाने के लिए उत्सुक होता है और अपनी माँ से इजाजत लेने के लिए जाता है। विवश माँ विदेश न जाने के लिए अनेक यत्न करती है लेकिन महेन्द्र ने एक न मानी और 1. डा० नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ. 102.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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