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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
चुकी थी। शिक्षा का प्रसार केवल उच्च वर्ग तक सीमित था । भगवान महावीर ने ही सर्वप्रथम लोक शिक्षण का कार्य प्रारंभ किया तथा उसके माधयम से जनता में जागृति का घोष भर दिया। लोक-शिक्षण के लिए उन्होंने लोक में व्यवहृत प्राकृत भाषा को ही माध्यम के रूप में स्वीकारना उचित समझा और उसी में उन्होंने अपने उपदेश भी दिए। अपने धर्म के फैलावे के लिए जनता की भाषा ही सर्वश्रेष्ठ साधन सिद्ध हो सकती है, अतः महावीर ने अर्धमागधी प्राकृत में ही बोधगम्य व रोचक शैली में उपदेश दिए। समाज की चेतना को उद्बुद्ध करने के लिए संस्कृत का मोह त्यागकर लोकभाषा को स्वीकारने में महावीर की व्यवहारिकता का दर्शन होता है। उन्होंने लोकभाषा में उपदेश देकर भाषा के उन्माद पर तीव्र प्रहार किया।' इसे धार्मिक व साहित्यिक क्षेत्र में भाषाकीय क्रांति का एक नूतन रूप ही समझा जायेगा। लोकभाषा में लोक-शिक्षण का प्रारंभ कर महावीर ने जैन धर्म की ओर श्रद्धान्वित जनता को जैन धर्म में दीक्षित करने का भगीरथ कार्य आसानी से किया। जन- भाषा में ही महावीर ने धर्म-सूत्रों की व्याख्या की तथा उनके मोक्ष के उपरान्त प्राकृत में ही जैन आगम-ग्रथों की रचना की गई थी। महावीर और उनके प्रमुख विद्वान शिष्यों ने परख लिया था कि जन- भाषा में ही चेतना एवं शक्ति के साथ तादात्म्य भाव स्थापित करने की विशिष्टता निहित होती है। इस प्रकार भगवान महावीर अपने युग में लोकभाषा के उद्धारक व अध्येता के रूप में प्रसिद्ध हुए । जैन-धर्म के प्रमुख तत्व :
यहां हमारा प्रयोजन न कोई दार्शनिक तत्वों का विश्लेषण करना है, न ही जैन धर्म की आध्यात्मिक विचारधारा की गहराई में जाने का ही है। जैन धर्म के प्रमुख धार्मिक सिद्धान्तों को देखने की आवश्यकता महसूस होती है, क्योंकि प्राचीन या अर्वाचीन पूरा जैन - साहित्य इन्हीं आधारभूत तत्वों की भूमि पर ही रचा गया है। जैन धर्म के तीर्थंकरों, मनीषियों, तत्वचिंतकों और शास्त्रकारों ने दार्शनिक विचारधारा स्वीकृत की है, तथा चिन्तन-मनन द्वारा इसके मूल तत्वों का प्रतिपादन किया है, उन्हीं के आलोक में हमें आधुनिक जैन - साहित्य का आकलन करना है। इसी उद्देश्य से हम यहां संक्षेप में उन तत्वों पर विचार करना समीचीन समझते हैं। जैन धर्म के मनीषियों द्वारा विवेचित व निर्धारित तत्वों को जैन समाज श्रद्धा व आदर की दृष्टि से देखता है तथा उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करता है। इन प्रमुख तत्वों को आधार या प्रेरणा बनाकर रचे गये साहित्य में समाज को उपदेश के साथ आनंद प्रदान
1. द्रष्टव्य - उत्तरांग सूत्र - 6/10
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