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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
(1) सम्राट श्रेणिक बिम्बसार :
जैन धर्म के प्रति अत्यन्त आस्थावान महाराज श्रेणिक अपने प्रारंभिक जीवन में जैन धर्म के कट्टर विरोधी और आलोचक थे, लेकिन महारानी चेलना जैन धर्मी होने से क्रमश: महाराज को भी जैन धर्म की अहिंसा, उदात्तता, समन्वय भाव आदि विशेषताओं से परिचय करवाकर आकर्षित करती है। बाद में तो वे भगवान महावीर के अनन्य भक्त बन गये और उनके उपदेशों का चारों ओर प्रचार-प्रसार करवाया। प्रभु महावीर से चर्चा, विचारण, प्रश्नोत्तरी करके जीव, जगत, धर्म आदि सम्बंधी अनेक समस्याओं का निराकरण करवाते • रहे। अनेक जिन मंदिरों एवं उपाश्रयों का निर्माण करवाया। प्रारंभ में वे युवराज पद से हटाये गये थे, लेकिन बाद में महाराजा बनाये गये । प्रथम महारानी ब्राह्मण कन्या नंदिनी थी, जो बौद्ध धर्मी थी। लेकिन उसका पुत्र अभयकुमार जैन धर्म के प्रति आस्थावान था और उसने महावीर से दीक्षा ग्रहण की थी। अतः रानी चेलना के पुत्र अजातशत्रु को युवराज बनाया, जिसने अंत समय में श्रेणिक को बहुत कष्ट दिये थे और उनकी असामयिक मृत्यु हुई हो गई थी। प्राचीन ग्रंथों में महाराज श्रेणिक को अनन्य जैन धर्म उपासक सम्राट के रूप में अत्यन्त आदरपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है।
(2) सम्राट महानन्द :
मगध के सम्राट महानंद ने मुरा नामक दासी से ब्याह करके उसे सम्राज्ञी बनाया। उसी से पद्म नामक बेटे का जन्म हुआ। वैसे तो वह प्रतापी और उदार था, लेकिन पुरातन पंडितों के हृदय में शूद्र जाति से उत्पन्न होने के कारण उसके प्रति ईर्ष्याग्नि धधक रही थी और इसी से नन्द साम्राज्य का पतन हुआ । पंडित प्रवर संस्कृत वैयाकरणी पाणिनी महानंद के दरबार के रत्न और तक्षशिला के प्रमुख आचार्य थे।
(3) कुरुम्बाधीश्वर :
द्राविड़देश की आदिवासी जातियों में एक कुरुम्ब नामक जाति भी थी जो बिल्कुल आदिमवस्था में ही रहती थी। इन कुरुम्बों को सभ्यता एवं संस्कार निकट के वन में रहते जैन मुनि ने सिखलाये और उनमें से एक युवक को शास्त्र-शस्त्र, नीति व धर्म की विद्या सिखला कर निष्णांत बनाया गया। वही 'कुरुम्बाधीश्वर' कहलाया। उसने अपने दरबार के लिए एक पक्का मकान व जैन मंदिर बनवाया, सेना की स्थापना की, तथा किला भी बनवाया। जैन मुनि के उपदेश एवं शिक्षा से वह मांस भक्षी जाति सभ्य व संस्कारी बन गई। आपस में बैर झगड़े के बदले वे लोग प्रेम व सहकार से रहने लगे। इनके विकास की