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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 331 कथा चोलवंशीय राजा अन्होल के पास पुरोहितों द्वारा पहुँच गई। दोनों के बीच हुए युद्ध में कुरुम्बु की विजय हुई और पराधीन चोल राजा को क्षमा कर दिया गया। फिर से जैन धर्म से प्रचार की लगन से उसे युद्ध खोर बना दिया और उसके राज्य का पतन हो गया लेकिन कुरुम्बाधीश जैन धर्म के लिए अमर शहीद हो गये। (4) नृप बिज्जलदेव : बिज्जलदेव जैन धर्मी था और अपने नगर कल्याणपुर के पुरोहित की पद्मिनी नामक सुन्दर और विद्वान् कन्या पर मोहित हो उससे ब्याह करता है पद्मिनी के भाई वासव की धर्मांधता ने देश और जैन धर्म को भारी धक्का पहुँचाया। वह शैव धर्मी था और 'लिंगायत' नाम शैव धर्म की स्थापना की थी। अपने बहनोई बिज्जलदेव को अपने पथ का विघ्न समझकर दो बार मार डालने का षडयंत्र करता है लेकिन असफल होने से राजदण्ड के भय से स्वयं आत्महत्या कर लेता है। राजा बिज्जलदेव सच्चे जैनी होने से अपने साले के दुष्कृत्य को क्षमा देते हैं। (5) सेनापति वैच्चप : दक्षिण के विजयनगर के राज-सिंहासन पर राजा बुवकाराय विराजमान थे। उस समय बाहर से आक्रमण का भय रहता था। नगर के भीतर भिन्न-भिन्न धर्मवाले एक-दूसरे को हीन बताते थे और जैन साधुओं व जैनियों को उपासना के लिए कोई पवित्र स्थल नहीं दिया जाता था। वैसे राजा वैष्णव धर्म पालने पर भी सभी को समान न्याय व प्रेम करता था, वह सर्वधर्म सहिष्णु था। श्रीयण्ण जैनी महाजन का पत्र सेनापति वैच्चप जैनों, बौद्धों और वैष्णवों के बीच सहकार व प्रेम की भावना पैदा करने की कोशिश करता रहता था। वीरता के साथ सामान्य जनता की समस्यओं को समझने की बुद्धि कौशम्ब व धीरता भी थी। अपने धर्म को चाहने के साथ अन्य धर्मों का भी वह आदर करता था। अपने राज्य की रक्षा के लिए यवनों के आक्रमण के सामने वह मर्दानगी से लड़ा और वीरगति को प्राप्त किया। लेकिन विजयनगर एवं कोंकण में विजयनगर के महाराज का विजयध्वज फहराया। युद्ध में वीरगति को प्राप्त सैनिकों के स्मारक चिह्न 'वीरगल' में एक वीर सेनापति वैच्चप का भी था। इस प्रकार कामता प्रसाद जैन ने आधुनिक हिन्दी जैन-साहित्य में कथा-साहित्य के अतिरिक्त निबंधकार और इतिहासकार के रूप में भी अपना विशिष्ट योगदान दिया है। उनके कथा-साहित्य में कहीं-कहीं प्रत्यक्ष उपदेशात्मकता रहने पर भी हार्दिक अनुभूति के कारण खटकता नहीं है।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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