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________________ 324 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य 16 कहानियाँ हैं। इस संग्रह की कहानियाँ केवल कहानियों तक सीमित न होकर किंवदंतियाँ, संस्मरण, चुटकुले और व्यंग्योक्ति के रूप में भी है। जीवन के विविध अनुभवों और साहित्य के अगाध संयम के पश्चात् जो रत्न निकाले हैं, इनको व्यंग्यात्मक एवं हल्की-फुल्की शैली में प्रस्तुत किया है। इन कथाओं में लेखक की कला का अनेक स्थलों पर परिचय मिलता है। आकर्षक वर्णन शैली और बलशाली मुहावरेदार भाषा हृदय और मन को पूरा प्रभावित करती है। इनमें वास्तविकता के साथ ही भाव को अधिकाधिक महत्व दिया गया है। वस्तुतः श्री गोयलीय ने जीवन के अनुभवों को लेकर मनोरंजक व्याख्यान लिखे हैं। साधारण लोग जिन बातों की उपेक्षा करते हैं, आपने उन्हीं को कलात्मक शैली में लिखा है। अतः सभी कथाएँ जीवन के उच्च व्यापारों के साथ सम्बंध रखती है। वैसे इस संग्रह में कहानियों के लिए आवश्यक तत्वों का-यथा घटना, कथोपकथन, चरित्र-चित्रण, वातावरण आदि-पूर्णतः समावेश नहीं हो पाया है, फिर भी नूतन आकर्षक शैली एवं भावों की प्राण भूमि के कारण वे सजीव व रोचक बन पड़ी हैं। इसके साथ ही जिज्ञासा का निर्वाह तथा मानसिक तृप्ति सभी में उपलब्ध है। इनको पढ़कर हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जो कहानी शिल्प की दृष्टि से कहानियों की विशेषता व सजीवता का उज्ज्वल दृष्टान्त है। भाव जितने उत्कृष्ट हैं, भाषा उतनी ही प्रभावशील एवं भावानुकूल बनी है। कथा के प्रवाह को आगे बढ़ाने के लिए सहायक भाषा का एक उदाहरण देखिए-'तुम्हारे जैसे दातार तो बहुत मिल जायेंगे, पर मेरे जैसे त्यागी विरले ही होंगे, जो एक लाख को ठोकर मारकर कुछ अपनी ओर से मिलाकर चल देते हैं। इसी प्रकार ईष्या के परिणाम को लेखक व्यंग्य व विनोदात्मक शैली में प्रस्तुत कर हमारे हृदय को प्रभावित करने की कुशलता का परिचय देते हैं-जैसे-भोजन के समय एक के आगे घास और दूसरे के आगे भूसा रख दिया गया। पंडितों ने देखा तो आग-बबूला हो गये। सेठ जी! हमारा यह अपमान? महाराज! आप ही लोगों ने तो एक दूसरे को गधा और बैल बतलाया है।' इस संग्रह की विशेषताओं पर अपना मंतव्य व्यक्त करते हुए डा. नेमिचन्द्र जी लिखते हैं-हिये की आँखों से गोयलीय जी ने जिन रत्नों को खोजा है, उनकी चमक अद्भुत है। अधिकांश रचनाएँ मार्मिक और प्रभावशाली हैं। भाषा और शैली की सरलता गोयलीय की अपनी विशेषता है। उर्दू और हिन्दी का ऐसा सुन्दर समन्वय अन्यत्र शायद ही मिल सकेगा। यही कारण है कि एक 1. डा. नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 103, 104. 2. अयोध्याप्रसाद गोयलीय-गहरे पानी बैठ-'त्यागी' कहानी, पृ. 24.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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