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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 325 साधारण शिक्षित पाठक भी इन कहानियों का रसास्वादन कर सकता है। अभिव्यंजना इतने चुभते हुए ढंग से हुई है, जिससे आख्यानों का उद्देश्य ग्रहण करने में हृदय को तनिक भी श्रम नहीं करना पड़ता। मिश्री की डली मुँह में डालते ही धीरे-धीरे घुलने लगती है और मिठास अपने आप भीतर तक पहुँच जाती है। ___'ठाकुर' उपनाम से प्रख्यात पं. बलभद्र जी न्यायतीर्थ की कहानियाँ भी 'जैनसंदेश' में प्रकट होती रहती थीं। इनकी कथाओं में कथा-साहित्य के तत्वों के साथ-साथ जीवन की उदात्त भावनाओं का भी सुन्दर रूप अंकित होता है। उद्देश्य रोचक ढंग से मुखरित होने से नीरसता या उकताहट कम आने पाई है। बलभद्र जी का प्राथमिक प्रयास होने से कथाओं में कथानक, संवाद एवं कला के विकास की अपूर्णता रह जाने पाई है। फिर भी वर्णनात्मक व परिमार्जित शैली के कारण कथाएँ आकर्षक हैं। बाबू कामता प्रसाद जी ने भी प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों पर से आधारित कहानियाँ काफी मात्रा में लिखी हैं-विशेषकर उन्होंने धार्मिक ऐतिहासिक स्त्री-पुरुषों की यशः पताका फहराने वाली छोटी-छोटी कथाएं लिखी हैं, जैसे-पंचरत्न, नवरत्न आदि। इसके उपरान्त भगवान पार्श्वनाथ की कथा भी उन्होंने आधुनिक भाषा-शैली में प्रस्तुत की है। उनकी प्रायः पुस्तकें 'दिगम्बर जैन' मासिक पत्रिका के लिए ग्राहकों को उपहार देने के लिए लिखी गई हैं। जैन कथाएँ लिखने के उद्देश्य को व्यक्त करते हुए वे लिखते हैं-जैन कथाओं ने एक समय सारे संसार का कल्याण किया था। आज हिन्दी वालों को उसका पता नहीं है। बहुत-सी बातें तो स्वयं जैनी भी नहीं जानते हैं। बस, इसीलिए कि लोग जैन कथाओं और जैन पुरुषों को जाने-पहचाने, मैंने यह उद्योग किया है। कहानी का आधार कल्पना मात्र है, लेकिन कोरी कल्पना नहीं है। वे सत्य घटनाओं पर निर्भर है, ऐतिहासिक है। + + + + + प्रस्तुत इन कहानियों में ऐतिहासिक घटनाओं का पल्लवित रूप है। उनसे जैन संघ की उदार समाज व्यवस्था और जैनों के राष्ट्रीय हित-कार्य का भी परिचय होता है। नवरत्न : 'नवरत्न' कहानी-संग्रह में जैन धर्म के प्रसिद्ध ऐतिहासिक नव पुरुष-रत्नों की ज्योति को प्रकाश में लाने का कार्य कामता प्रसाद जी ने किया है। इस रचना के उद्देश्य पर विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं-हम जानते हैं कि 1. डा० नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 106. 2. कामता प्रसाद जैन : पंचरत्न, दो शब्द, पृ० 2.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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