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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन- गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु रोटी की चीख पर, कोष उनके 'टेक्स' पर और आपका सब कुछ क्या उनके सब कुछ को कुचल कर, उस पर ही नहीं खड़ा लहलहा रहा? फिर मैं उस पर चलता हूँ ता क्या हर्ज है? हाँ, अन्तर है तो इतना है कि आपके क्षेत्र का विस्तार सीमित है, पर मेरे कार्य के लिए क्षेत्र की कोई सीमा नहीं, और मेरे कार्य के शिकार कुछ छंटे लोग होते हैं, जबकि आपका राजत्व छोटे-बड़े, हीन - संपन्न, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सबको एक-सा पीसता है। इसीलिए मुझे अपना मार्ग ज्यादा ठीक मालूम होता है। 307 'कुमार, बहस न करो । कुकर्म में ऐसी हठ भयावह है। राजा समाज तन्त्र राजाओं द्वारा परिपालित परिपुष्ट विद्वानों की किताबों का ज्ञान यही बतलाता है ? - नहीं, तो बताइए, क्यों आवश्यक है ? क्या राजा का महल न रहे तो सब मर जाय, उसका मुकुट टूटे तो बस टूट जाए और सिंहासन न रहे तो क्या कुछ रहे ही नहीं? बताइए, फिर क्यों आवश्यक है? इस मार्मिक चुभते हुए वार्तालाप में राजा की अनुपादेयता एवं जनतंत्र के तत्त्वों पर भी अप्रत्यक्ष प्रकाश डाला गया हैं। बालचन्द्र जैन एम०ए० ने पौराणिक आख्यानों को लेकर नवीन शैली में सुन्दर भावप्रधान कहानियाँ लिखी हैं। 'आत्मसर्मपण' उनका ऐसा ही संकलन है, जिसमें अनेक रोचक कहानियाँ संग्रहीत की गई हैं। इसी शीर्षक की प्रथम कहानी में नारीत्व की महत्ता प्रतिष्ठापित करने वाले मूर्तिमन्त चित्र लेखक ने खींचे हैं। नेमिनाथ प्रभु की वाग्दत्ता राजुल कुमारी के त्यागमय वचनों में नारी के गौरव, प्रभुत्व तथा ऋजुता के साथ दृढ़ता व तेज भी आविर्भूत होता है नेमि जी यदि संसार त्याग कर तपश्चर्या लीन हो सकते हैं, तो राजुल फिर क्यों पीछे रहे ? उसने भी संसार के सर्व ऐश्वर्यों से पल मात्र में मुँह मोड़कर आर्यिका व्रत ग्रहण कर लिया । 'साम्राज्य का मूल्य' कंहानी में भौतिकता के मोह भरे पदों को क्षण मात्र में चीरकर आध्यात्मिकता के नए स्वर को गुजित किया है चक्रवर्ती महाराजा भरत का अहं महान वीर बाहुबली के अभूत पूर्व त्याग के सामने चूर-चूर हो जाता है। कहानी के अंत में भरत के इन शब्दों में दम्भ के प्रति ग्लानि का भाव स्पष्ट लक्षित होता है- मैं तो सिर्फ आपका प्रतिनिधि बनकर प्रजा की सेवा कर रहा हूँ। मेरा कुछ भी नहीं है, मैं अकिंचन हूँ। 'दम्भ का अंत' कहानी में मानवी की आंतरिक परिस्थितियों का सुन्दर चित्रण किया गया है। मनुष्य किस प्रकार की परिस्थिति में अपने हृदय की बात छिपाना चाहता है, वह कृष्ण के चरित्र द्वारा अच्छा बताया गया है। सरल, निष्कपट हृदय वाले वीर, धर्म-प्रेमी नेमिकुमार कृष्ण के हृदय को परख कर उनकी आलोचना भी शान्त स्वर में करते हैं। उनके मृदु मानस पर गहरा आघात पड़ता
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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