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________________ 308 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य है। वे द्वारिका से दूर, अति दूर जाकर संयम ग्रहण करते हैं। 'रक्षाबंधन' में त्याग, प्रेम और सहनशीलता की उद्भावना सुन्दर ढंग से की गई हैं। मुनियों पर भीषण उपसर्ग आने पर भी वे डरकर भागते नहीं, परेशान हुए बिना स्वस्थता से अत्याचारों को सहन करते-करते कर्मों की निर्जरा' करते हैं। कहानीकार ने मुनि विष्णुकुमार के वचनों द्वारा त्याग और संयम का लक्ष्य प्रकट करते हुए कहलाया है-दिगम्बर मुनि सांसारिक भोग और वैभव के लिए अपने शरीर को नहीं तपाते। उन्हें तो आत्म सिद्धि चाहिए। वही एक अभिलाषा, वही एक शिक्षा है।" रक्षा बंधन का प्रचलन भी मुनि-रक्षा के कारण हुआ था, इस तथ्य को यहाँ स्वीकारा गया है। 'गुरु-दक्षिणा' में लेखक के हृदय के भावों का प्रतिबंध दिखाई पड़ता है। नारी हृदय की महत्ता यही है कि उसका स्नेह मृदुल और कठोर कर्तव्यों के बीच प्रवाहित होता जा रहा है।' 'निर्दोष' कहानी मनुष्य की वासना एवं कमजोरियों पर प्रकाश डालती है। नारी हृदय की दाम्भिकता का रूप भी यहाँ प्रकट होता है। महारानी श्रेष्ठि सुदर्शन जैसे निर्मोही व सरल व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप लगाती है। लेकिन अंत में रानी को अपनी भूलों का पछतावा होता है। और वह सेठ से क्षमा चाहती है। 'आत्मा की शक्ति' में आत्म शक्ति के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। दुनिया भर की शक्तियों का महत्त्व सर्वश्रेष्ठ है। अतः इसको प्राप्त करने के लिए निश्चय ही संयम, त्याग, दृढ़ता एवं मनोनिग्रह को आत्मसात् करने की कोशिश करनी चाहिए। जब इसका विकास होता है, तो मनुष्य के भीतर तेज का गौरव फुट निकलता है और भय, निराशा, कायरता, वेदना सब कुछ दूर चले जाते हैं। क्योंकि मनुष्यत्व देवेत्व से भी ऊँचा होता है। ___ 'बलिदान' कहानी में कर्त्तव्य को अंकित किया गया है। धर्म की रक्षा हेतु छोटा भाई निष्कलंक हँसते-हँसते अपना बलिदान देकर बड़े भाई अकलंक की रक्षा करता है। अपने अग्रज अकलंक-बाद में जो जैन धर्म के विद्वान प्रसिद्ध आचार्य श्री अकंलक देव से प्रसिद्ध हुए-को छिपा कर स्वयं राजा के सिपाहियों की तलवार का शिकार बनता है। आत्म-बलिदान की गाथा इसी एक वाक्य पर अवलम्बित है-भैया! शीघ्रता करो। वे आ पहुँचे। जैन धर्म की रक्षा तुम्हारे हाथ है। धर्म के प्रचार एवं प्रसार हेतु बडे भाई को सुरक्षित रख स्वयं की बलि देने के आग्रह पर वे दृढ़ रहकर 'नमो सिद्धाणम्' बोल कर शान्ति से प्राण त्याग करते हैं। 'सत्य की ओर' कहानी में त्याग और विवेक शक्ति का महत्त्व अंकित किया गया है, जिनके द्वारा संदेह की दीवार गिर जाती है। विद्युच्चर चोर की महत्ता इसी वाक्य में दिखाई पड़ती है-हाँ, श्रीमान्। कुख्यात विद्युच्चर मैं ही हूँ।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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