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________________ 302 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य मनोवलवाली नारी के सामने शांत हो जाते हैं। सुर सुन्दरी का चरित्र-चित्रण काफी कुशलता से किया गया है। कथोपकथन भी अच्छे हैं। इस कथा की विशेषता भाषा-शैली में विद्यमान है। भाषा शुद्ध साहित्यिक हिन्दी है, जिसमें उर्दू-फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया गया हैं। “भाषा में स्निग्धता, कोमलता और माधुर्य तीनों गुण विद्यमान है। शैली सरस है, साथ ही संगठित, प्रवाहपूर्ण और सरस हैं। रोचकता और सजीवता इस कथा में विद्यमान हैं। कोई भी पाठक पढ़ना आरंभ करने पर, इसे समाप्त किए बिना श्वास नहीं ले सकता। प्रवाह की तीव्रता में पड़कर वह एक किनारे पहुँच जाता है।" सती दमयन्ती : ___ इस पौराणिक कथा में लेखक ने दमयन्ती के शील एवं पातिव्रत के आदर्शों एवं गुणों की महत्ता अभिव्यक्त की है। आदर्श की रक्षा के लिए कहीं-कहीं अवास्तविक घटनाएँ घटती हुई भी बताई गई हैं, जो आज के वैज्ञानिक युग में अविश्सनीय प्रतीत होती हैं। कथा-वस्तु : __नल परिस्थिति वश या पूर्वोपार्जित कर्मानुसार द्युत क्रीड़ा में स्त्री सहित सब कुछ हार जाता है। अतः नल राजपाट छोड़ बन में चला जाता है और दमयन्ती भी पतिव्रत धर्म का पालन करने हेतु उसके मार्ग का अनुसरण करती है। कूबड़ उसकी भर्त्सना करता है, लेकिन सतीत्व की विजय होती है। नल वन में सोई हुई दमयन्ती को छोड़ चला जाता है। निद्रा भंग होने पर वह अपने आंचल में लिखे लेख के अनुसार मार्ग पर चल पड़ती है। मार्ग में अनेक अघटित घटनाएँ घटती हैं, जिनके द्वारा सतीत्व का तेज और निखर उठता है। अंत में दमयन्ती अपनी मौसी चन्द्रयशा रानी की सहायता से अपने पिता के यहाँ पहुँचती है। इधर इसी नगर में नल भी आया हुआ है। नल सूर्यपाक बनाता है। दमयन्ती उसे पहचान लेती है और दोनों का 12 वर्ष पश्चात् मिलन होता है। नल दमयन्ती को यक्ष सम्बंधी अपनी कथा सुनाता है। कथा विस्तार, चरित्र-चित्रण, भाषा-शैली आदि में नवीनता होने पर भी लेखक ने पूर्णतः पौराणिकता अपनाई है, जिससे अलौकिक तत्त्वों व घटनाएँ अविश्वसनीय जान पड़ती हैं। उदाहरण के लिए सती के तेज से शुष्क सरोवर का जल से पूर्ण होना, कैदियों की बेड़ी टूट जाना, डाकुओं का भाग जाना इत्यादि घटनाएँ ऐसी हैं। दमयन्ती का चरित्र-चित्रण अलौकिक एवं अमानवीय 1. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, द्वितीय भाग, पृ० 87.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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