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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 303 बन गया हैं। भाषा सरल और मुहावरेदार आधुनिक हिन्दी है। रोचकता और उत्सुकता आद्योपान्त विद्यमान है। रूप-सुन्दरी : भागमल शर्मा लिखित इस कथा में पाप-पुण्य का फल प्रदर्शित किया गया है। मनुष्यों के कार्यों पर परिस्थितियों का भी काफी प्रभाव पड़ता है। परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार कभी-कभी मनुष्य नीच से नीच तक और कभी ऊँचे से ऊँचे कार्य भी कर सकता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में जो मनुष्य बुरा प्रतीत होता है, वही अनुकूल परिस्थितियों में अच्छे कार्य करके सद्गुणी भी बन सकता हैं क्योंकि मनुष्य कोई यन्त्र न होकर अच्छे-बुरे तत्त्वों, कमजोरी आदि द्वन्द्वों से युक्त मानव है। अतः इन सबके साथ उसका व्यक्तिव बनता-बिगड़ता है। लेखक ने रूप सुन्दरी-एक कृषक भार्या-एवं धूर्त साधुकुमार देवदत्त के चरित्र द्वारा उन्हीं तत्त्वों का विश्लेषण किया है। युवान कृषक पत्नी रूपसुन्दरी सुन्दर एवं बुद्धिमान भी है। अपने पति को सच्चा स्नेह करती है, लेकिन देवदत्त नामक धूर्त युवक उसे अपनी मोह जाल में फांस लेता है। दोनों के बीच स्नेह हो जाता है। स्नेह तो क्या, वासनाजन्य आकर्षण ही होता है। वह ग्लानि एवं लज्जा का अनुभव कर कुपथ से हट जाने का निश्चय कर लेती है। लेकिन कपटी धूर्त देवदत्त उसके पति का मायावी भेष धारण कर असली पति से लड़ने लगता है। रूपसुन्दरी भी समान रूपवाले दो पुरुषों को देखकर सशंकित हो जाती है और अपना न्याय कराने के लिए न्यायालय की शरण लेती है, जहाँ अभयकुमार यथार्थ न्याय करते हैं। सतीत्व को निभाये रखने की दृढ़ प्रतिज्ञा के कारण रूपसुन्दरी का चेहरा भी तेजस्वी हो उठा था। देवदत्त को सभी ओर से काफी धिक्कार मिलता है। उसे भी एक संनिष्ठ स्त्री को अपनी माया से बुरे रास्ते पर ले जाने के प्रयत्न के लिए काफी पश्चाताप होता है। वह रूपसुन्दरी के चरणों में गिर क्षमा चाहता है। कथा की दृष्टि से इसमें तीव्रता, स्वाभाविकता, उत्सुकता नहीं पाई जाती है, लेकिन चारित्रिक विकास की दृष्टि से कथा सुन्दर है। लेखक कथा वस्तु के द्वारा व्यक्त करना चाहता है द्वन्द्वात्मक चरित्र को प्रभावशाली बनाकर कथा में रोचकता बनाए रखने की कोशिश की है। निम्नोक्त संवाद में मनोभावों की तीव्रता का अच्छा चित्र मिलता है मुझे तेरे मधुर प्रेम का एक बार स्वाद मिले तो? 1. प्रकाशक-आत्मानंद जैन ट्रेक्ट सोसायटी, अंबाला, शहर।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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