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________________ 300 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य इस प्रकार अनेक प्रकार के अस्वाभाविक परिवर्तनों के बावजूद भी कथावस्तु में उत्सुकता एवं रोचकता विद्यमान होने से पाठक उबता नहीं है। कथोपकथन भी प्रभावशाली एवं आकर्षक हैं। संवाद कथा को गतिमय बनाए रखने में सहायक हुए हैं, यह हम नारद की बड़बडाहट के समय देख सकते हैं-हाँ, यह दुर्दशा, यह अत्याचार, नारद से ऐसा व्यवहार। ठीक है। व्याधियों को देख लूँगा। सीता, तुझे धन-यौवन का गर्व है। उस गर्व के कारण तूने नारद का अपमान किया है। अच्छा है। नारद अपमान का बदला लेना जानता है। नारद थोड़े ही दिनों में तुझे इसका फल चखायेगा, और ऐसा फल चखायेगा कि जिसके कारण तू जन्म भर हृदय वेदना में जलती रहेगी।' इस कथन से आगे आनेवाली घटनाओं का भी संकेत छिपा हैं। यहाँ नारद के चरित्र को गिरा दिया गया है। सीता के चरित्र का काफी मार्मिक उद्घाटन कर उसके सतीत्व, गौरव एवं तेज को व्यक्त किया गया है। सुर-सुन्दरी : जैन साहित्य में सती सुर-सुन्दरी की कथा अत्यन्त लोकप्रिय है सुरसुन्दरी अपने साहस, धैर्य एवं हिम्मत से पति के द्वारा किए गए अपमान व अवदशा का सामना कर विकट परिस्थितियों में पति की दु:खद परिस्थिति में सहायता करती है। इस कथा को 'सात कौड़ियों में राज' के नाम से भी जाना जाता है। इस पौराणिक कथा में लेखक वर्मा जी ने यथेष्ट कल्पना के द्वारा पर्याप्त परिवर्तन किया है। कथा-वस्तु : सुरसुन्दरी एक राजकन्या है और अमरकुमार श्रेष्ठि पुत्र है। दोनों बचपन में साथ अभ्यास करते हैं। बड़े होने पर दोनों के बीच प्रीत जगती है। और दोनों प्रेमपाश में बन्ध जाते हैं। एक बार सोती हुई राजकुमारी की गाँठ से सात कौड़ी निकाली। अमरकुमार के कृत्य से राजकुमारी को बुरा लगा। वह कहने लगी कि सात कौडियों में तो राज्य प्राप्त किया जा सकता है। बड़े होने पर दोनों का ब्याह हो जाता है। कुछ समय आनन्दपूर्वक व्यतीत हो जाने के बाद पिता की आज्ञा ले जहाजों में माल लदवा कर अमरकुमार व्यापार के लिए सुरसुन्दरी के साथ परदेश जाता है। वन में प्रकृति की शीतलता व सौंदर्य देखते हुए दोनों विश्राम करने लगे। सुन्दरी अमर के घुटनों पर विश्वास और शान्ति से सो गई तभी एकाएक पूर्व का अपमान और सुरसुन्दरी के कटु वचन अमर कुमार को याद आ गए। अतः पत्थर को सिर के नीचे रखकर उसे सोता छोड़ चला गया।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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