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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन- गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु उछलती - कूदती है, वह नितान्त अस्वाभाविक लगता है। हाँ, उसका असीम धैर्य, संतोष, पातिव्रत, शालीनता, सहिष्णुता आदि गुण नारी के लिए अवश्य अनुकरणीय हैं। मित्र प्रहस्त का चरित्र भी काफी महत्त्वपूर्ण है। लेखक ने इस पात्र को गौरवपूर्ण चित्रित किया है। पवनंजय का अभिन्न मित्र प्रहस्त वास्तविकता की भूमि पर खड़ा है, जो पवनंजय को एक वक्त पर मार्के की सलाह देता रहता है। वह उसके भीतर छिपे हुए अहंकार को ताड़कर इशारा भी कर देता है। सबके प्रति सदैव सहानुभूति रखता हुआ वह पवनंजय को प्रेम भी करता है, उसका सच्चा सलाहकार है, मित्र है, लेकिन पवनंजय कभी-कभी उसकी अवज्ञा - सा कर देता है। लेकिन हृदय प्रहस्त कब मित्र - फर्ज चूकने वाला है? जब पवनंजय युवराज्ञी अंजना का अकारण परित्याग केवल अपनी अहंतुष्टि के लिए करता हैं तो सारे नगर में क्षुब्धता व उदासी फैल जाती हैं। कुमार को कुछ कहने की किसी में हिम्मत नहीं है, तब प्रहस्त उससे भेंट करता है। बातचीत के दौरान उसने पवनंजय को सावधान भी कर दिया कि सबको त्यागकर जो अपने 'मैं' को प्रस्थापित करने में लगा है, वह बीतरागी नहीं, वह सबसे भोगी और रागी है। वह ममता का सबसे बड़ा अपराधी है। अपने 'मैं' को जीत लो और सारी दुनिया विजीत होकर तुम्हारे चरणों में आ पड़ेगी। मुक्ति विमुखता नहीं है, पवन! वह उन्मुक्ता है। 285 : अंजना की. सखी वसन्तमाला का चरित्र अत्यन्त स्वाभाविक हो पाया है। अंजना की सखी के अतिरिक्त वह उसकी बहन, सेविका, माँ सर्वस्व है। उसके सुख-दुःख की सच्ची साथी है। दुनियादारी की समझ उसके भीतर अधिक होने से हर संकट में वह अंजना की रक्षक बन उसकी मर्मान्तक वेदना कम करने की चेष्टा निरन्तर करती रहती है। अंजना के सुख-दुःख और इच्छा आकांक्षा के आगे सखी की भलाई के लिए न्यौछावर कर दिया है। उसका त्याग अद्वितीय है। अंजना के साथ वह छाया की तरह रह कर उसके परितापों को हल्का करने की सदैव चेष्टा करती रहती है। प्रधान पात्रों के अतिरिक्त राजा महेन्द्र, प्रह्लाद, रानी केतुमती आदि गौण पात्रों का चरित्र-चित्रण भी पूर्ण सफलता के साथ किया है। रानी केतुमती का बिल्कुल स्वाभाविक सास के रूप में चित्रण किया गया है। हनूसह के राजा प्रतिसूर्य का भी संक्षिप्त चित्रण आकर्षक बन पड़ा है। कथोपकथन और शैली : 'मुक्तिदूत' उपन्यास का कथोपकथन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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