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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 283 आत्म विकास एवं आत्म विजय की क्रमशः कथा है। पुरुष पवनंजय का अहम् नारी अंजना के त्याग, बलिदान और मूक आत्म समर्पण के द्वारा पिघल जाता हैं। अंजना अपने त्याग से ऊँचे ही ऊँचे उठती जा रही है, जबकि पवनंजय अहंकार के बोझ से नीचे ही नीचे गिरता जा रहा है। अंजना के समर्पण ने पतित पवनंजय का हाथ थामकर ऊँचा उठा दिया। महासती अंजना का पवित्र प्रेम, संपूर्ण विश्वास अंत तक पुरुष के अहंकार को तोड़ता हुआ उसे मार्गदर्शन भी देता रहा है। अंजना का चरित्र अत्यन्त सशक्त एवं प्रातिभ है। नारी के विषय में इतनी ऊँची से ऊँची कल्पना ही कहीं अन्यत्र मिले। 'मुक्तिदूत' की कथावस्तु जितनी तल पर है, उतनी ही सिर्फ नहीं है। उसके भीतर एक प्रतीक कथा चल रही है, जिसे हम ब्रह्म और माया, प्रकृति और पुरुष की द्वन्द्व लीला कह सकते हैं। अनेक अन्तर्द्वन्द्व, मोह-प्रेम, विरह-मिलन, रूप-सौंदर्य, दैव-पुरुषार्थ, त्याग-स्वीकार, दैहिक कोमलता, आत्मिक मार्दव, ब्रह्मचर्य, निखिल रमण और इनके आध्यात्मिक अर्ध कथा के संघटन और गुम्फन में सहज ही प्रकाशित हुए हैं। पवनंजय इस बात का प्रतीक है कि वह पदार्थ को बाहर से सीधे पकड़कर उस पर विजय पाना चाहता है और उसी में उसका पराजय है, एकांगता है। जबकि अंजना का पात्र भावना का हृदयवाद का प्रतीक हैं, जो केवल पुरुष को ही नहीं, समस्त विश्व को शान्ति दे सकता है।" वैसे 'मुक्तिदूत' की कथा में रोमान्स के सब अंग होते हुए भी सर्वत्र करुण कथा ही दिखाई पड़ती है। प्रत्येक पात्र व्यथा-पीड़ा का बोझ लिए चल रहा है। कथा की सार्थकता अंतिम अध्याय की अंतिम पंक्तियों में पूर्ण झलकती है, जहाँ-"प्रकृति पुरुष में लीन हो गई और पुरुष प्रकृति में व्यक्त हो उठा।" कथा में प्रकृति वर्णन के सौंदर्य से गद्य-काव्य का आनन्द, भावनुभूति एवं आह्लादता का अनुभव होता है। पात्र : इस उपन्यास के प्रमुख पात्र हैं पवनंजय, अंजना, वसन्तमाला, प्रहस्त, प्रह्लाद, केतुमती, महेन्द्र और प्रतिसूर्य आदि। इन सबके चरित्र चित्रण में लेखक का रचना कौशल अत्यन्त चमक उठा है। नायक पवनंजय का चित्रण भाव से भरे हुए पुरुष के रूप में किया गया है. जो अपनी विवशता, एकाकीपन व नारी की कमी को जानता तो है, लेकिन अभिमान-दर्प के कारण कुछ स्पष्टता न कर मन ही मन जलता है, दुःखी होता हैं और फलस्वरूप उन्मत्त-सा घूमता रहता है। वह अंजना के अनुपम लावण्य 1. 'मुक्तिदूत' लक्ष्मीचन्द्र जैन लिखित-'आमुख' से पृ० 4.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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