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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
जा सकता है। धार्मिक उद्देश्य के परिनिर्वाह के साथ औपन्यासिक तत्त्वों से पूर्णतः रक्षा हुई है। रमणवृत्ति एवं कुतूहलवृत्ति दोनों की परितृष्टि के लिए घटना चमत्कार और प्रबल भावानुभूतियों का मार्मिक अंकन किया गया है। इसमें वीरेन्द्र जी ने पवनंजय के आत्म विकास तथा अंजना की कष्ट-सहिष्णुता, प्रेम, धैर्य की मर्मान्तक कथा का भाववाही सुरेख अंकन किया हैं। अहंकार के अन्धकारागार से पुरुष को नारी ही अपने प्रेम, एकनिष्ठता, त्याग-बलिदान व वात्सल्य के प्रकाश द्वारा मुक्त करने में समर्थ है, इसकी प्रतीति अंजना-पवनंजय के सशक्त चरित्र-चित्रण-द्वारा स्पष्ट किया है। वीरेन्द्रकुमार जी का आधुनिक मनोवैज्ञानिक शैली में लिखित सुन्दर उपन्यास 'अनुतर योगी' प्रकाशित हुआ है। इसके दो खण्ड 'वैशाली का राजपुत्र' और 'असिधारा पथ का यात्री' प्रकाशित हो चुके हैं। तृतीय खण्ड प्रकाशित होने वाला है। आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य वीरेन्द्र जी के साहित्य से अवश्य गौरवान्वित है। कथा-वस्तु :
'मुक्ति दूत' का कथानक पौराणिक है। 'पद्मपुराण' में इसकी कथा का उल्लेख प्राप्त होता हैं 'हनूमनचरित्र' में भी इस कथा का वर्णन है। जैन साहित्य में नेमि-राजुल, श्रीपाल-मैना की कथा की तरह अंजना-पवनंजय की कथा अत्यन्त लोकप्रिय हैं। प्रायः सभी युग में अंजना-पवनंजय विषयक साहित्यिक रचनाएँ उपलब्ध होती हैं।
आदित्यपुर के महाराज प्रह्लाद व रानी केतुमती का एक मात्र पुत्र पवनंजय है, जो अपने माता-पिता के साथ कैलाश की यात्रा से लौटते मानसरोवर ठहरे। वहाँ का राजा महेन्द्र अपनी पुत्री अंजना की शादी पहले से ही पवनंजय से निश्चित कर चुके थे। पवनंजय मानसरोवर की अपार जल राशि में क्रीड़ा करते समय पास की श्वेत अट्टालिका से मधुर कोमल स्वरवाली अंजना को देखा तो वह प्रणय उन्माद लेकर वापस आया। उसकी प्रेम वेदना देखकर उसका अंतरंग मिग प्रहस्त विमान द्वारा अंजना के राज-प्रसाद पर ले जाता हैं वहाँ प्रसाद के उद्यान में अंजना अपनी सखियों के साथ विहार कर रही थी। अंजना की अभिन्न सखी वसन्तमाला पवनंजय के रूप, यौवन, गुण की प्रशंसा कर रही थी और अंजना-पवनंजय के गुणगान एवं ध्यान में लीन थी। अंजना ने यह कुछ सुना नहीं था, लेकिन जैसे ही ध्यान भंग हुआ तो हर्ष के मारे उसने सखियों से नृत्य गान करने की आज्ञा दी। पवनंजय ने अंजना की तल्लीनता व नृत्यगान की इच्छा का यह अर्थ लिया कि मेरी निंदा का प्रतिकार नहीं करती और विद्युत प्रभ की प्रशंसा से प्रसन्न होकर नाच-गान करवाती है। उसकी