SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु आधुनिक हिन्दी - जैन 277 में प्रयुक्त करने का प्रयत्न प्रशंसनीय है। शुद्ध कलात्मक औपन्यासिक दृष्टिकोण से यह वृत्ति उपन्यास के लिए बाधा रूप बन सकती है, लेकिन धर्म के दृष्टिकोण - विशेष से लिखे गए इस उपन्यास में यह विचार गांभीर्य अवरोधक कम बनता है। हाँ, कहीं-कहीं जैन धर्म के पारिभाषिक शब्द समझने में नहीं आने से कठिनाई महसूस अवश्य हो सकती हैं। अतः प्रकशक को स्पष्टता करनी पड़ी हैं-यह उपन्यास कोई सामान्य कथा - कहानी नहीं है, लेकिन एक सामाजिक व धार्मिक सैद्धांतिक ग्रन्थ ही कहानी रूप में है, जो इसके पढ़ने से ही स्पष्ट मालूम हो सकेगा। 'अतः धार्मिक चर्चा रसानुभूति व ग्रन्थ की कलात्मकता में यदि कहीं बाधक हुई तो भी क्षम्य है। वैसे आचार-विचारात्मक शिक्षा सम्बंधी विचारधारा की बहुलता कथा की समरसता में विरोध नहीं उत्पन्न करती। 44 डॉ॰ नेमिचन्द्र शास्त्री इस उपन्यास की विशेषता के संदर्भ में लिखते हैं-यह उपन्यास एक ओर आदर्श जीवन की झांकी देकर नैतिक उत्थान का मार्ग प्रस्तुत करता है तो दूसरी ओर कुत्सित जीवन का नंगा चित्र खींचकर कुपथगामी होने से रोकने की शिक्षा देता है। सदाचार के प्रति आकर्षण और दुराचार के प्रति गर्हण उत्पन्न करने में यह रचना समर्थ है। कला की दृष्टि से भी उपन्यास सफल है। इसमें भावनाएँ सरस, स्वाभाविक और हृदय पर चोट करने वाली है। कथा का प्रवाह पाठक के उत्साह और अभिलाषा को द्विगुणित करता है समस्त जीवन के व्यापार - श्रृंखला और चरित्र-निर्माण के अनुकूल है।. सब से बड़ी विशेषता इस उपन्यास की यह है कि इसक व्यर्थ के हाव-भावों से नहीं भरा गया है, किन्तु जीवन के अन्तर्बाध्य पक्षों का उद्घाटन बड़ी खूबी के किया गया है।' गोपालदास बरैया जी के इस उपन्यास की शैली प्रौढ़ है। कहीं-कहीं तो काव्यात्मक सौन्दर्य झलकता है। अलंकारों, मुहावरों और सूक्तियों के उपयुक्त प्रयोगों से भाषा को जीवंत बनाया गया हैं। भाषा सर्वत्र शुद्ध परिमार्जित है। थोड़ी बहुत संस्कृत निष्ठ शैली व भाषा का रूप दृष्टिगत होता है। विषयानुकूल पात्रानुकूल भाषा का लेखक ने प्रयोग किया है। अभिनयात्मक तथा विश्लेषणात्मक कथोपकथन व चित्रमय वर्णनों से उपन्यास को आकर्षक बनाया गया है। मुक्ति दूत : आधुनिक युग को जैन साहित्य के श्रेष्ठ उपन्यासकार श्री वीरेन्द्र जैन का यह अत्यन्त सशक्त, सुन्दर उपन्यास है। इसको सभी दृष्टिकोणों से सफल कहा 1. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 67.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy