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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 279 तल्लीनता पवनंजय के विचार व खुशी उसकी स्मृति के कारण थी, यह बात बेचारा पवनंजय जान नहीं पाता और जिसकी वजह से अंजना की करुण कथा का बीज जन्म लेता है। गुस्से में अपने पड़ाव पर लौट आने के बाद अपमान के प्रतिकार स्वरूप प्रात:काल ससैन्य प्रस्थान करने को प्रारंभ करता है। पवनंजय की कूच के समाचार से राजा महेन्द्र और प्रह्लाद दोनों व्यग्र और चिंतित होते हैं। राजा प्रह्लाद उसके अभिन्न मित्र प्रहस्त को समझाने-बुझाने के लिए भेजते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप वह वापस आकर शादी तो कर लेता है, लेकिन आदित्यपुर जाकर अंजना का त्यागकर अपने अपमान का बदला लिया। अपने भ्रम से समझ लिए अपमान के इस प्रकार के बदले से अंजना, माता-पिता प्रजा, प्रहस्त, अंजना की अंतरंग सखी वसन्तमाला-जो उसके साथ आई है, सभी दुखी थे, विवश और निरूपाय भी हुए। स्वयं पवनंजय अपने अहंकार के कारण उन्मत्त, उदास रहने लगा। माता-पिता के दूसरे व्याह के सूचना को भी वह इन्कार कर देता है। उसी समय पाताल द्वीप के अभिमानी राजा वरुण पर हमला करता है। और अपनी सहायता के लिए अपने माण्डलिक राजा प्रह्लाद को सहायतार्थ ससैन्य आने का संदेश भिजवाया। पवनंजय अपनी घुटन भरी मनहूस जिन्दगी व वातावरण से मुक्त होने की इच्छा से पिता के बदले स्वयं जाने का फैसला करता है और पिता की आज्ञा भी प्राप्त करता है। युद्ध क्षेत्र में जाने से पूर्व वह महल में से विदा होता है, तब प्रवेश द्वार पर पति को विदा करने के लिए अंजना मंगलकलश और आरती लेकर सामने आती है। पवनंजय उसे कुलटा, धूर्त समझकर उसकी अवहेलना कर चला जाता है। बिदा लेने के बाद रास्ते में मानसरोवर से तट पर सैन्य विश्राम करने रात्रि को ठहरा। उस समय निस्तब्ध वातावरण में चकवे के वियोग में तड़पती चकवी को देखकर उसे एकाएक अंजना की वेदना, दर्शन, आकुलता, विरह-दग्धता, छटपटाहट, कष्ट-सहिष्णुता की याद आने लगी। उसी समय निर्णय कर प्रहस्त के साथ विमान में बैठकर अंजना के महल में आता है। अंजना तो रात दिन पति के नाम की माला जपती रहती है और कर्मों के क्षय के साथ भाग्योदय से अवश्य पति का मिलन होगा, ऐसा विश्वास संजोये रखा हैं। पवनंजय आकर अंजना से क्षमा याचना कर पर प्रेम की भीख माँगता है। अंजना भक्तिभावपूर्वक पति का स्वागत कर क्षोभ मिटा देती है। पूरी रात दोनों आनन्द पूर्वक केलि-क्रीड़ा में बिता देते है। जब पवनंजय जाने लगा तो वसन्तमाला ने भविष्य का विचार कर उससे मुद्रिका और मुहर प्राप्त कर ली।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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