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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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चित्र-वर्णनों का उत्कृष्ट रूप 'मुक्तिदूत' उपन्यास में दृष्टिगत होता है। एक से बढ़कर एक भव्य, काव्यात्मक सजीव वर्णन प्रकृति के कोमल और भयानक स्वरूप को पढ़कर उपन्यासकार की प्रतिभा व कल्पना शक्ति की सराहना किए बिना नहीं रहा जाता। इन सब विशेषताओं के बावजूद भी जैन उपन्यास की संतोषप्रद-यथेष्ट-प्रगति नहीं हुई है। अभी इसका सृजन करने के लिए विविध क्षेत्र और प्राचीन कथानकों का भण्डार अछूता पड़ा है। प्राचीन कथा-ग्रंथों का द्वार तो खुला हुआ है ही, आधुनिक जीवन और वातावरण से भी विशद् वस्तु प्राप्त कर नवीन ढंग से सैद्धान्ति दृष्टि कोण को दृष्टिगत रखकर उपन्यास लिखने के लिए प्रयत्न अपेक्षित है।
हिन्दी जैन उपन्यास साहित्य के उपलब्ध प्रमुख उपन्यासों की कथावस्तु यहाँ दी जाती है। मनोवती : ___श्री जैनेन्द्र किशोर लिखित यह उपन्यास प्रारंभिक युग की कृति है। अतः इसमें आधुनिक औपन्यासिक कला का प्रायः अभाव है। आज तो इस विधा की समुचित उन्नति हो चुकी है और उसके प्रत्येक तत्त्व का संश्लेषण, विश्लेषण भी हो रहा है। लेकिन 'मनोवती' उपन्यास उस काल में लिखा गया था जब हिन्दी साहित्य में उपन्यास लेखन प्रारंभ हो रहा था। कथावस्तु : __इसकी कथावस्तु पौराणिक है और इसमें नए युग के परिवर्तन और समस्त भावों का चित्रण नहीं हुआ है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है
हस्तिनापुर के सेठ सौभाग्यशाली लक्ष्मी पुत्र थे। उनकी मनोवती नाम की एक अत्यन्त धार्मिक एवं सुशील पुत्री थी। वयस्क होने पर माता-पिता ने उसकी शादी जौहरी हेमचंद के पुत्र बुद्धिसेन के साथ कर दी, जो बल्लभपुर-निवासी थे।
मनोवती ने अपने गुरु से प्रतिज्ञा ली थी कि प्रतिदिन गजमुक्ता का हार भगवान को चढ़ाकर भोजन ग्रहण करूँगी। प्रथम बार सुसराल जाकर भी उसने अपने नियमानुसार मंदिर में गजमुक्ता चडाकर उसका पालन किया। प्रात:काल नगर की मालिन ने जब ये कीमती मोती देखे तो प्रसन्न होकर पुरस्कार पाने के लोभ से वहाँ के महाराज की छोटी रानी की माला में गूथकर ले गई। मालिन के इस व्यवहार से बडी रानी को गुस्सा भी आया और वह रूठ गई। राजा ने उसे ऐसे गजमोतियों का हार ला देने का आश्वासन देकर मनाया। दूसरे दिन प्रात:काल नगर के जौहरियों को बुलाकर गजमोती लाने का आदेश दिया। सभी