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________________ 262 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य जीवन की रंगस्थली पर खेलने के लिए स्वतंत्र छोड़ देते हैं और पात्र द्वारा जीवन के घात-प्रतिघात, उत्कर्ष-अपकर्ष, हर्ष, विषाद आदि की स्वाभाविक अभिव्यक्ति उपन्यास की सफलता कही जाती है। उपन्यास में पात्रों का फलक विस्तृत रहने से जीवन के हर क्षेत्र के पात्रों की भावानुभूति और मानसिक स्थितियों का विश्लेषण इसमें पाया जाता है। सभी का चरित्र-चित्रण भी विशद्ता से किया गया है। कहीं-कहीं तो पात्रों को याद रखने के लिए आयाम-सा करना पड़ता है, जैसे-'सुशीला' उपन्यास में। ये उपन्यास मानवों के सहज, स्वाभाविक चरित्र-चित्रण की दृष्टि से खरे उतरते हैं। __ कथोपकथन भी कथावस्तु और चरित्र-चित्रण की तरह अत्यन्त रोचक व प्रवाहपूर्ण रहे हैं। 'सुशीला' उपन्यास के संवाद छोटे-छोटे रसपूर्ण व ज्ञानवर्द्धक भी है। उसी प्रकार 'मुक्तिदूत' के संवादों में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण व लालित्य भरा पड़ा है। संवाद स्वाभाविक और प्रसंगानुकूल है। निरर्थक कथोपकथन की संख्या कम रहती है। आदर्श कथोपकथन पात्रों के भाव, मनोवेगों, प्रवृत्तियों और घटनाओं की प्रभावान्विति के साथ कार्य प्रवाह को भी आगे बढ़ाता है। उपन्यासकार अपने पात्रों के वार्तालाप में परिस्थितियों के अनुसार मोड़ पैदा कराकर जीवन के आचार-विचार, व्यवहार, धर्म-सिद्धान्त आदि विषयों का भी रसात्मक दिग्दर्शन कराते हैं, जो उपन्यास की कथावस्तु के साथ पूर्णतः संगठित होने के कारण नीरस या बाधक नहीं प्रतीत होता। सबसे बड़ी विशिष्टता यह है कि ये उपन्यास धार्मिक होने के कारण उद्देश्य प्रधान रहते हैं और नैतिक, आचारात्मक या सैद्धांतिक नियमों, व्यवहारों का निरूपण इनमें होना अत्यन्त स्वाभाविक है। दुराचारों की तुलना में सदाचार एवं धर्म की महता का निरूपण कौशल के साथ इनमें दिखलाया गया है। इसके विपरीत मानव की प्रवृत्ति, जीवन की समस्याओं का समाहार ऐसे उपन्यासों में अत्यल्प रहता हो तो आश्चर्य क्या? उपन्यास के अन्त तक नैतिक आदर्शों की प्रभावान्विति पैदा करने की क्षमता रहती है। इन उपन्यासों के कथानक पुरातन होने के कारण नर-नारी के सुख-दु:ख, जय-पराजय, क्रोध, करुणा, संघर्ष, राग-द्वेष आदि का मांगलिक निरूपण किया गया है, जिनको पढ़कर हमारे हृदय की चित्तवृत्तियों का उत्कर्ष हो सकता है। जैन उपन्यासों में एक ध्यानाकृष्ट करने वाली विशेषता है, सुन्दर रसात्मक, वर्णनों की। वे वर्णन जीवन जगत् के व्यवहार, धर्म, आचार-विचार सम्बंधी या सामाजिक या व्यक्तिगत सम्बंध हो या प्रकृति के सुन्दर विविध पक्षों से सम्बंधित हों, इनकी रम्यता, भव्यता अवश्य मनमोहक होती है। सुंदर दृश्य,
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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