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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 261 आध्यात्मिक क्षुधा को शान्त करना जैन उपन्यासों का प्रधान लक्ष्य है।"' प्राचीन और मध्यकाल में उपन्यास की विधा न रहने से अनुवादित उपन्यास का सवाल भी नहीं उठता। उसी प्रकार विशिष्ट धार्मिक साहित्य होने से अन्य भाषाओं से-संस्कृत, बँगला या अंग्रेजी से- अनुवाद कर उपन्यास का भण्डार भरने का प्रश्न नहीं उपस्थित होता और उद्देश्य-प्रधान उपयोगी साहित्य के कारण उपन्यास ही प्राप्त होते हैं। “यद्यपि जैन उपन्यास की ओर अभी भी जैन लेखकों ने ध्यान नहीं दिया है, तो भी जीवन के सत्य और आनन्द की अभिव्यंजना करने वाले कई उपन्यास हैं। जैन लेखकों को अभी अपार कथा सागर का मंथन कर रत्न निकालने का प्रयत्न करना शेष है।" जैन उपन्यासों की संक्षिप्त विशेषताएं : __ जैन उपन्यासों की सर्वप्रथम विशेषता कथानक सम्बंधी कही जायेगी। कथावस्तु में जिज्ञासा व कौतूहल-वृत्ति को उकसाकर शांत करने की क्षमता बराबर बनी रहती है। इसमें जीवन और जगत् के आध्यात्मिक व्यापक सम्बंधों की समीक्षा व्यक्त की गई है और मानवीय अन्तर्वत्ति और अन्तर्भावों का भी सुन्दर निरूपण किया गया है। कथानक इतना रोचक होता है कि पाठक उसकी पौराणिकता भूल कर घटनाओं और वर्णनों के रसास्वादन द्वारा वास्तविक संज्ञाओं को थोडे क्षणों के लिए भूलकर कल्पना के संसार में विचरण करने लगता है। ये घटनाएँ भी एक-दूसरे से इस प्रकार से सम्बंधित होती हैं कि उपसंहार की ओर अग्रसर होने वाली इन घटनाओं को अलग नहीं किया जा सकता। एक व्यापक विधान या उद्देश्य के अनुसार कथावस्तु के भिन्न-भिन्न अवयव सुगठित होने से घटनाओं में सातत्य बना रहता है। कथावस्तु प्राचीन होने पर भी हमारे ही जीवन से सम्बंधित होने से कहीं कृत्रिमता न लगकर स्वाभाविक प्रतीत होती है। उसी प्रकार प्रायः उपन्यासों की कथावस्तु के बीच सुन्दर, भावप्रधान, प्राकृतिक वर्णनों या मानव-जीवन की सार्थकता-निरर्थकता, अच्छे-बुरे व्यवहार आदि से सम्बंधित वर्णनों के कारण कथावस्तु में सजीवता और सुन्दरता पाई है। ___ कथावस्तु के साथ दोनों प्रकार का चरित्र-चित्रण विश्लेषणात्मक और नाट्यात्मक जैन उपन्यासों में प्राप्त होता है। उपन्यासकार अपने विविध पात्रों को 1. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ. 55. 2. वही, पृ. 57.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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