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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
जौहरियों ने लालच वश इनकार कर दिया। हेमदत्त-मनोवती के ससुर ने राजदरबार में तो इनकार कर दिया, लेकिन घर जाकर सोचने लगे कि जब यदि मनोवती घर में गौना करके आयेगी तब तो भेद अवश्य खुल जायेगा और राजा को मालूम पड़ जाने से मेरी संपत्ति लूट लेंगे और मैं निर्धन बन जाऊँगा। अतएव, अन्य पुत्रों से परामर्श कर बहू घर में न आ सके, इसलिए छोटे पुत्र बुद्धिसेन को ही घर से निर्वासित कर दिया।
मजबूर बुद्धिसेन घर से निकाल दिए जाने पर श्वसुर-गृह हस्तिनापुर आता है और पत्नी को सारी घटना बतला देता है। फिर दंपती संपत्ति प्राप्त करने के लिए निस्तब्ध रात्रि में चुपचाप घर से निकल जाते हैं। धर्मपरायण पत्नी की सहायता व उत्साह से दोनों रत्नपुर पहुँच कर वहाँ के राजा को प्रसन्न कर लिया। रत्नपुर के राजा ने भी उसके कौशल-चातुर्य पर प्रसन्न होकर अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया व दहेज में अत्यन्त धन-संपत्ति दी। दोनों पत्नियों के साथ सुखपूर्वक रहते हुए कितने वर्ष व्यतीत हुए। एक बार धर्मनिष्ठा मनोवती को जिनालय बनवाने की इच्छा हुई, जो उसने पति से प्रकट की। पत्नी की प्रेरणा पाकर एक करोड़ रुपये का भव्य जिनालय बनवाना शुरू किया। अब उसका व्यापार चारों ओर फैला था और वह करोडों की संपत्ति का मालिक था।
उधर वल्लभपुर में बुद्धिसेन के माता-पिता व भाई-भाभिओं की दशा बुरी बन गई थी। जिनदेव की अवज्ञा स्वरूप उन्होंने बुद्धिसेन को घर से बाहर निकाल दिया था, तब से आर्थिक दशा बहुत बिगड जाने से आजीविका के लिए वे इधर-उधर भटक रहे थे। तभी सौभाग्य या दुर्भाग्य वश वे मजदूरी के लिए यहीं आ गए, जहाँ भगवान का भव्य मंदिर बन रहा था। शुरू-शुय में तो क्रोध वश व बदले की भावना से बुद्धिसेन ने उन सभी से मजदूरी करवाई, किन्तु कुछ दिनों के बाद मनोवती के कहने से उनका सम्मान किया और अपने निवास पर ले जाकर सभी प्रेम से मिले। बीते दिनों को सभी भूल गये और आनन्द-मंगल से रहने लगे, तभी बल्लभपुर के नरेश द्वारा निमंत्रित होने पर सभी वहाँ चले गये।
यही इस उपन्यास की कथावस्तु है, कथावस्तु में रोचकता है तथा घटनाएँ भी जिज्ञासा प्रेरक हैं। नवीनता कुछ विशेष नहीं है। नारी के सौन्दर्य और संपत्ति का निरूपण कथावस्तु में प्राचीन प्रणाली पर हुआ है। कथावस्तु की एक विशेषता है कि इसमें लौकिक प्रेम के साथ अलौकिकता का भी समन्वय किया गया है। उसी प्रकार बदले की भावना की अपेक्षा क्षमावृत्ति से ही महानता प्राप्त