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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य प्रमुख स्थान राजस्थान, और ब्रजभूमि के आसपास का प्रान्त होने से उन प्रान्तों की बोलियों का प्रभाव तो रहेगा ही। लेकिन परिवर्तित परिपृष्ठों के साथ जैन गद्य साहित्य का भी शुद्ध हिन्दी भाषा में सृजन होने लगा। ( आधुनिक काल में इसी भाषा में गद्य की अनेक विद्याओं का प्रारंभ करने की चेष्टा साहित्यकारों ने की है। युगानुरूप भाषा-शैली में जैन-‍ -गद्य ने अपना रूप सजाया-संवारा है । ) 14वीं से 19वीं शती तक ब्रजभाषा गद्य में लिखी गई जैन ग्रंथों की वचनिकाएँ प्राप्त होती हैं। बीसवीं शती के प्रारंभ में भी धार्मिक निबंध तथा वचनिकाएँ लिखने के अनन्तर ललित वाङ्मय के विकास की ओर साहित्यकारों का ध्यान आकृष्ट हुआ। क्रमशः वे पौराणिक आधारों पर कथा वस्तु ग्रहण कर कथा साहित्य का सृजन करने लगे। इसके साथ-साथ जीवनी, नाटक व निबंधों की रचनाएँ भी प्रकाशित होने लगीं। निबंध व कथा साहित्य जैन साहित्य के लिए आधुनिक विधा न रहकर प्राचीन है, जबकि नाटक व उपन्यास आधुनिक युग की देन कही जायेगी। क्योंकि जैन लेखकों ने इस विधा में नूतन विचारधारा व भाषा शैली में गद्य-निर्माण नहीं किया था। कुछ कथाएँ उवश्य लिखी हुई । प्राचीन संस्कृत और प्राकृत के कथा ग्रंथों के अनुवाद भी ढूंढारी भाषा में लिखे गए जिससे सर्व साधारण इन कथाओं को पढ़कर धर्म-अधर्म के फल को समझ सकें। वस्तुतः जैन गद्यकारों ने अपने प्राचीन ग्रंथों का हिन्दी गद्य में अनुवाद कर गद्य-साहित्य को पल्लवित किया है। ' हिन्दी साहित्य में गद्य की अनेक विधाओं का जो विद्युत् वेगी विकास होकर भण्डार भरा गया है, उसकी तुलना में जैन - गद्य साहित्य का विकास परिमित कहा जायेगा। क्योंकि विशिष्ट धर्म सम्बंधित होने से निश्चित उद्देश्य व सिद्धान्तों को दृष्टि सम्मुख रखकर ही साहित्य सृजन करना पड़ता है। फिर भी सुन्दर, शिष्ट कलात्मक कृतियाँ भी जैन गद्य साहित्य में उपलब्ध होती हैं। आधुनिक जैन गद्य साहित्य के विकास पर प्रकाश डालते हुए डॉ० नेमिचन्द्र जी लिखते हैं- जैन गद्य साहित्य का विकास उपन्यास, कथा, कहानी, नाटक, निबंध और भावात्मक गद्य के रूप में इस शताब्दी (20वीं शताब्दी) में निरन्तर होता जा रहा है। धार्मिक रचनाओं के सिवा कथात्मक साहित्य का प्रणयन भी अनेक लेखकों ने किया है। प्राचीन कथाओं का हिन्दी गद्य में अनुवाद तथा प्राचीन कथानकों से उपादान लेकर नवीन शैली में कथाओं का सृजन विपुल परिणाम में किया गया है।” 258 1. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 40. 2. डॉ॰ नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 53.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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