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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 259 ___ इस कथनानुसार जैन साहित्य प्राचीन गौरव गाथाओं को नूतन भाषा शैली में अभिव्यक्त करता हुआ बढ़ा जा रहा है। निबंध साहित्य की विपुलता अवश्य ध्यानाकर्षित करती है। उसी प्रकार जीवनी व चरित साहित्य का विकास उल्लेखनीय है। नाटकों की संख्या भी अच्छी कही जायेगी, जिसमें राजकुमार जैन, न्यामत सिंह व भगवत जैन के नाम उल्लेखनीय हैं। उपन्यासों की संख्या अत्यल्प है, जब कि कथा संग्रहों की संख्या विशेष है। यहाँ प्रत्येक विधा की प्रमुख रचनाओं की संक्षिप्त चर्चा कर लेना समीचीन होगा। उपन्यास : उपन्यास ही गद्य साहित्य की सर्वाधिक सशक्त व रोचक विधा है कि जिसमें लेखक जीवन के विविध पहलुओं का आकर्षक कथावस्तु, सुन्दर क्रियाकलापों, रमणीय वर्णनों, मार्मिक संवाद, वातावरण की सृष्टि व चित्ताकर्षक भाषा शैली के साथपरिचय करा सकने के समर्थ होता है। बाहरी वातावरण के साथ मानव हृदय के अन्तर्गत की विभिन्न परिस्थितियों व भावभंगिमाओं से उपन्यासकार सहृदय पाठक को अवगत करा सकता है। सामान्य जनता में मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्द्धन तथा लोकोपयोगी शिक्षा के उद्देश्य के साथ कला के निरूपण का हेतु भी संपन्न हो सकता है। पाश्चात्य साहित्य से प्रभावित होकर प्रारंभ हुए उपन्यास साहित्य को, वर्तमान युग की अति लोकप्रिय देन कही जायेगी। उपन्यास में मानव जीवन के विविध व्यवहार व पक्षों का सजीव, रसात्मक चित्रण होने से उसने महत्त्वपूर्ण साहित्य-विधा का स्थान हासिल कर लिया है। हिन्दी जगत् में बंगला साहित्य के द्वारा अंग्रेजी साहित्य से परिचित होकर उपन्यास का प्रारंभ स्वीकार किया जाता है। वैसे संस्कृत साहित्य में 'उपन्यास' शब्द मिलता है, जो आधुनिक उपन्यास (Novel) के संदर्भ में न होकर 'नाटक' के विषय में प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन साहित्य में कथा साहित्य पद्य में मिलता है, लेकिन आधुनिक युग में यह शब्द जिस रूप व अर्थ में प्रयुक्त होता है, उस रूप में नहीं मिलता। उपन्यास-साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी लिखते हैं-'वर्तमान जगत् में उपन्यासों की बड़ी शक्ति है। समाज जो रूप पकड़ रहा है, उसके भिन्न-भिन्न वर्गों में जो प्रवृत्तियों उत्पन्न हो रही हैं, उपन्यास उनका विस्तृत प्रत्यक्षीकरण ही नहीं करते, प्रवृत्ति भी उत्पन्न कर सकते हैं। इसी प्रकार उपन्यास सम्राट मुंशी 1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ० 366.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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