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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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कर्म करे सो जिन वचन, तत्व ज्ञानी को मर्म जब जान्यो निजरूप को, तब जान्यो सब लोक नहि जान्यो निज रूप को, सब जान्यो से फोक। व्यवहार से देव जिन, निहजे से हैं आप, ऐही वचन से समाज को, जिन प्रवचन की छाप॥
"इस प्रकार हमें श्रीमद् की चार रचनाएँ प्राप्त होती हैं। जिनमें से तीन तत्त्व विचार से सम्बंधित हैं व एक निजी उल्लास की है। चार में से तीन रचनाएँ दोहा छंद में है तथा 'यम-नियम' तोटक में है। ये रचनाएँ श्रीमद् का हिन्दी भाषा का प्रभुत्व व्यक्त करती हैं।" श्रद्धा एवं त्याग :
रतनलाल गंगवाल ने प्राचीन जैन कथा-साहित्य पर आधारित छोटी-सी दो कथाएँ लेकर दो पद्यमय रचनाएँ जैन समाज के लिए बाध के साथ गाई जानेवाली रची है। ये दोनों भावपूर्ण कथाएँ पढ़ने योग्य तो है ही, साथ ही धार्मिक सभाओं में भिन्न-भिन्न तों में साज-बाज के साथ सुनाई भी जा सकती है। जयपुर में ऐसी रचाओं को इसी ढंग से गाकर सुनाया जाता है, जिसे 'वर्णन' कहते हैं। प्रथम पद्य 'श्रद्धा' में प्रसिद्ध अंजन चोर की कथा ग्रहण की गई है, जिसे कवि ने सरल भाषा शैली में उपदेशात्मक ढंग से काव्यमय रूप प्रदान किया है। प्रसिद्ध अंजन चोर गणिका के फंदे में फंसकर अनेक व्यसनों में डूबा दिन रात चोरी करता है, लेकिन रत्न हार की चोरी पकड़े जाने के डर पर मौत नजदीक दिखाई पड़ती है, तब श्रद्धा से मंत्र-साधना कर जीवन बच जाने से धर्म के प्रति आसक्त होता है फिर श्रद्धा से धर्म ध्यान के पापों से मुक्त होने के लिए धर्म की शरण में आता है। सच्ची श्रद्धा एवं अटल निश्चय के कारण अंजन चोर में से अंजन मुनि बन गया-कवि प्रारंभ में कहते हैं
बिन श्रद्धा के प्रभु भक्ति का, होता सच्चा गुण गान कहाँ।
श्रद्धा और साहस के द्वारा, इंसान बने भगवान यहाँ॥ और काव्य के अंत में अंजन चोर के हृदय परिवर्तन पर कहते हैं :
हो गए वस्तु शीघ्र अंजन, पापों से अति भयभीत हुए। बस प्रथम बार ही पुण्य भाव, मानस में उदित पुनीत हुए।
(दोहा) दीक्षा लेकर बन गए, विजय केतु योगीश। __ पाप भार से कर लिया, हलका अपना शीश॥
1. डा० सरयू मेहता-श्रीमदनी जीवन सिद्धि, पृ० 480. 2. द्रष्टव्य-प्रकाशकीय निवेदन, पृ० 1.