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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
मारग साचा मिल गया :
सोलह पंक्ति के दोहरा छंद में रचे गये इस काव्य में सभी पंक्ति पूर्ण नहीं है। बहुत सी पंक्तियों के अर्थ चरण ही प्राप्त होते हैं। कवि राजचन्द्र को मोक्ष के लिए सच्चा मार्ग मिल चुका है, इस सिद्धि का आनंदोल्लास अभिव्यक्त किया है। मोक्ष मार्ग की प्राप्ति की निःशंकता स्पष्ट करते हुए कवि कहते हैं
मारग साचा मिल गया, छूट गए संदेह, होता सो तो जल गया, भिन्न किया निज देह।
अर्थात् आत्म स्वरूप के अनुभव रूप मोक्ष का सच्चा मार्ग प्राप्त होने से सर्व संदेह की निवृत्ति हुई-नि:शंकता प्राप्त हुई। परिणामतः मिथ्यात्व से जो कर्मबन्ध हुआ करता था, वह जलकर भस्म हो गया। आत्म स्वरूप को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है, इस विषय में कवि के विचार है कि
खोज पिण्ड ब्रह्माण्ड का, पता तो लग जाय ये हि ब्रह्माण्डी वासना, जब जावे सब----। आत्म ज्ञान प्राप्त करने की लगन जगने से जीव का क्या कहना है- . आप आपकु भूल गया, इनसे क्या अंधेर, समर समर अब हसत है, नहीं भूलेंगे फेर।
अर्थात् स्वयं आत्मा ही अपनी सत्ता स्थिति भूल गया था, इससे बड़ा अंधेर क्या हो सकता है। उस वस्तुस्थिति को याद करके भूल के स्मरण पर हंसी आती है।
___ कवि ने इस काव्य में आत्म-ज्ञान के सम्बंध में सरल शैली में अपने विचार अनुभव व्यक्त किए है। जिस पर से कवि का गहन अध्यात्म ज्ञान व तत्व ज्ञान स्वतः प्रकट होता है। यह काव्य कवि की 'हाथनोघ' में से प्राप्त होता
होत आसवा परिसवा :
दोहरा छंद में रचित इस काव्य में भी कवि ने ज्ञानी की दशा, जैन की महत्ता, उसके मुख्य तत्व आदि के विषय में विचार किया है। यह काव्य पूर्णतः आध्यात्मिक होने से जैन धर्म के पारिभाषिक शब्दों का बाहुल्य है। प्रथम दोहा में ही देखिए
होत आसवा परिसवा, नहीं इनमें संदेह, मात्र दृष्टि की भूल है, भूल गये गत ऐ ही। जिन सोही है आभा, अन्य होई सो कर्म