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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन 253 परिवर्तन अर्थ-गौरव में हानिकारक है। इस प्रकार यहाँ श्रीमद् राजचन्द्र ने आत्म ज्ञान प्राप्त करने का सरल व प्रभावपूर्ण मार्ग इंगित किया है। यम-नियम : बत्तीस पंक्ति के इस काव्य में भी सदगुरु की प्राप्ति व महत्ता पर ही जोर दिया गया है। तोटक छंद में रचित इस लंबे काव्य के दो भाग किए गए हैं। इसमें जीव, जीव का अज्ञान, अज्ञान को दूर करने के उपाय, गुरु की खोज के उपरांत गुरु-प्राप्ति, आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के जीव के उपायादि का वर्णन किया गया अतः स्वाभाविक है कि जैन दर्शन के पारिभाषिक शब्दों का भी कवि ने उपयोग किया है-यथा यम नियम संयम आप कियो, पुनि त्याग विराग अभाग लहयो बनवास लियो मुख मोन रहयो, दृढ़ आसन पद्म लगाय कियो। मन मौन निरोध रसबोध कियो, दृढ़ जोग प्रयोग सुतार भयो, जप भेद जपे, तप त्यों ही तपे, उस से ही उदासी जही सब पे। सब शास्त्रन के नय चारि हिये, मन मण्डन-खण्डन भेद लिए। सब साधन बार अनंत कियो, तदपि कछु हाथ हजु न पर्यों। लेकिन गुरु कृपा प्राप्त होते ही सब कुछ साध्य हो सकता है- . पल में प्रगटे मुख आमल से, अब सद्गुरु सुप्रेम बसे, तप से, मन से धन से, सबसे, गुरु देव की आन स्वआत्म बसे। तब सत्यसुधा दरशाद हिंगे, चतुरांगुल है हमसे मिलहे। रस देन निरंजन को वियही, गाहि जोग जुगो जुग सो जबही, पर प्रेम-प्रवाह बड़े प्रभु से, सब आगम भेद सु बसे। वह केवल को बीज ज्ञानी कहें, निज को अनुभव बतलाई दिये। गुरु की कृपा से जीव सृष्टि छूट आन्तर दृष्टि का विकास होता है। इस अनुभव-प्राप्ति के कवि 'चतुरांगुल है हमसे मिला है' कथन में स्पष्ट करते हैं। इस प्रकार काव्य में अभिव्यक्त मोक्ष-सुख के लिए सद्गुरु की प्राप्ति ही अनिवार्य है। 'बिना नयन' और 'यम नियम' दोनों में गुरु महात्म्य ही वर्णित है। प्रथम में संक्षिप्त रूप से और 'यम नियम' में विस्तृत रूप से यही भाव वर्णित है। 1. डा० सरयू मेहता-श्रीमदनी जीवन सिद्धि, पृ० 471. 'आम 12 पंक्तियां आ नाना काव्यमा श्रीमदे गुरु महात्म्य अने गुरुनी आज्ञाए चालवाथी मलतुं पुन्य बताव्यु छै। काव्य नी भाषा हिन्दी होवा छतां शब्दो नी गोठवणी सरल अने परस्पर अनुरूप छै। शब्दों नो फेरफार करतां अर्थनुं गौरव ओछु थतुं जणाय छे। आम अहीं श्रीमदे आत्मज्ञान पामवा माटे नो सरल तथा सचोट मार्ग बताव्यो छ।'
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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