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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य 1 रचनाएँ हिन्दी भी प्राप्त हैं। पद्यसंख्या सीमित होने पर भी एक एक पंक्ति में अनेक भाव व अर्थ भरे पड़े हैं। "छोटी में उन्होंने हिन्दी में से गुजराती में अनुवाद का कार्य किया था, लेकिन बाद में उन्होंने हिन्दी भाषा में ही पद्य-कृतियों की रचना की थी। ऐसी 'बिना नयन' 'यम नियम' आदि चार पद्य - प्र-कृतियां आज उपलब्ध है। इनमें से दो की हस्तनों में से प्राप्त हुई हैं। 2 उपलब्ध चारों रचनाओं में गुरु महात्म्य, ज्ञान प्राप्ति के पूर्व जीव के किए हुए अनेक साधनों, मूलमार्ग आदि पर श्रीमद् राजचन्द्रः ने गंभीरता से विचार किया है। इनसे राजचन्द्र का हिन्दी भाषा पर का अधिकार भी व्यक्त होता है। 'बिनानयन" उनकी सर्वप्रथम लोकोपयोगी अप्रकाशित रचना है। इसमें कवि ने छः दोहों में आत्म कल्याण के लिए आवश्यक तत्वों की चर्चा काव्यात्मक शैली में की है। मुक्तक की प्रथम पंक्ति 'बिना नयन पाये नहीं, बिना नयन की बात' में कबीरदास की उलट वासी की तरह बाह्य विरोध दिखाई पड़ता है, लेकिन गूढ़ार्थ में 'तत्वलोचन के बिना व अन्तर्मुख दृष्टि को खोले बिना आत्मा को नहीं जाना जा सकता' ऐसा अर्थ संनिहित है। आत्म ज्ञान देनेवाले गुरु की महत्ता, अनिवार्यता अभिव्यक्त करते हुए कवि कहते हैंबुझी चहत जो प्यास की, है बुझन की रीत 2 पावे नहीं गुरु बिना, ए ही अनादि स्थिति ए ही नहीं है कल्पना, ए ही नहीं बिभंग कई नर पंचम काल में, देखी वस्तु अभंग । अर्थात् आत्मा को जानने की प्यास यदि जीव को है तो उसे बुझाने का मार्ग भी है, वह है गुरु की कृपा । यह उपाय अनादिकाल से ज्ञानियों ने बताया है। गुरु की आज्ञा का पालन करने से आत्म-ज्ञान की प्राप्ति संभव होती है। इस मार्ग पर चलने से जीव को मुक्ति प्राप्त होती है। आत्म कलयाण का यह मार्ग कल्पित या भूल भरा - विभंग - भी नहीं है। इसके लिए मनुष्य को "नहीं देतु उपदेश का प्रथम लेहिं उपदेश' वृत्ति का पालन करना चाहिए। सर्व समर्पण भाव सदगुरु की शरण में जाने का बोध अंतिम दोहे में कवि देते हैं :पाया की ए बात है, निज छंदन को छोड़ पीछे लाग सतपुरुष के, तो सब बंधन तोड़ । 252 इस मुक्तक पर गुजराती भाषा का प्रभाव स्पष्ट लक्षित है। 'काव्य की भाषा हिन्दी होने पर भी शब्द व्यवस्था सरल व परस्पर अनुकूल है। शब्दों का 1. शतावधानी : एक साथ सौ क्रियाओं को कर सकने वाला सिद्ध विद्वान् पुरुष । 2. डा० सरयू मेहता - श्रीमदनी जीवन सिद्धि, पृ० 467. 3. श्रीमद् राजचन्द्र अगास आवृत्ति, अंक 258, पृ० 292.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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