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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन 251 आधुनिक काल में काव्य क्षेत्र में एक प्रवृत्ति यह पाई जाती है कि मध्यकाल के श्रेष्ठ भक्त कवियों की रचनाओं को पुनः संपादित करके सामान्य जनता में उन्हें प्रचलित किया जाता है, कहीं-कहीं गद्य में उनके काव्यों का विवरण, भावार्थ आदि स्पष्ट किया जाता है। इसके द्वारा श्रेष्ठ भावुक कवियों की उत्तम रचनाओं को जनता के समक्ष रखकर उनके काव्यों का रसास्वादन कराया जाय व उत्तम कवि की अप्रकाशित रचना प्रकाश में भी लाई जाती है। मोहनलाल शास्त्री ने 'जैनभजन संग्रह भाग-1-2' तथा भागचन्द जी ने 'भागचन्द पद-संग्रह' निकाले हैं, जिनमें मध्यकाल के कवियों का परिचय आदि जैन जगत को प्राप्त होता है। 'जैन-पद संग्रह' में मध्यकालीन कवि धानतराय कवि के 'धानतविलास' संग्रह से चुने हुए पदों का संकलन कवि ने किया है। 'जैन शतक' पं. ज्ञानचन्द्र जैन ने इस युग में प्रकाशित करवाया, जिसमें कवि मूलदास रचित 'जैन' अत्यंत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। उसी प्रकार 'अध्यात्म पदावली' में राजकुंवर जैन ने मध्यकाल के विभिन्न भक्त कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन कर प्रकाशित करवाया है। राजकुंवर जैन ने उस समय की धार्मिक सामाजिक व ऐतिहासिक परिस्थितियों का परिचयात्मक वर्णन किया है, ताकि इस संदर्भ में उसके कवियों की रचना का मूल्य और समीक्षा की जाय। पं० बेचरदास जी ने 'भजन-संग्रह-धर्मामृत' में भक्त कवियों की रचना को संपादित कर उनका विवेचन प्रस्तुत किया है। यहाँ हिन्दी जैन साहित्य में अनुदित कृति या संपादित कृतियों का उल्लेख करने का उद्देश्य नहीं है, क्योंकि इनकी संख्या विपुल मात्रा में है। यहाँ तो केवल मध्यकालीन भक्त कवियों की कविताओं को संकलित कर जैन समाज में प्रचार-प्रसार करने की प्रवृत्ति की ओर इंगित मात्र है। श्रीयुत् अगरचन्द नाहटा जी व भंवरलाल नाहटा जी ने 'ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह' में मध्यकालीन कवियों की ऐतिहासिक कृतियों का संकलन किया है। इस प्रकार की कृतियों में काव्यत्व के साथ-साथ इतिहास की कोई न कोई घटना, प्रसंग या व्यक्ति जुड़े हुए होने के कारण तत्कालीन धार्मिक और सामाजिक इतिहास पर भी थोड़ा-बहुत प्रकाश पड़ सकता है। ऐसे संग्रह को प्रकाशित करने में संपादक को सतर्कता एवं कुशलता बरतनी पड़ती है। __ आधुनिक हिन्दी-जैन-मुक्तक-रचयिताओं में सौराष्ट्र के प्रसिद्ध, तत्त्वज्ञानी व शतावधानी के रूप में अत्यंत सम्मानित श्रीमद् राजचन्द्र का नाम लिया जा सकता है। वैसे उनका पूरा साहित्य गुजराती भाषा को गौरवान्वित करता है, फिर भी, अध्यात्म-रस से परिपूर्ण ज्ञान-गुरु की महत्ता सिद्ध करने वाली चार-पाँच
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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