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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
नर-नारी पशु-पक्षी का हित जिसमें सोचा जाता हो, दीन-हीन पतितों को भी जो हर्ष सहित अपनाता हो । वैसे सभी धर्म-दर्शन यही तो संदेश देता है।
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श्री गुणभद्र 'अगास' व पं० मूलचन्द जी की कविता इस संग्रह में महत्वपूर्ण हैं। भगवत स्वरूप मुख्यतः कहानीकार और नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हैं लेकिन यहा इनकी दो कविताएँ भी ली गई हैं- 'सुख - शान्ति चाहता है मानव' तथा 'मुझे न कविता लिखना आता' है।
सर्वप्रथम कविता 'मेरी भावना' में कवि जुगलकिशोर मुख्तार जी-जो प्रसिद्ध निबंधकार भी हैं - मानवीय संवेदनाओं को महत्व देते हुए विश्व-कल्याण चाहते हैं। अपने राष्ट्र की उन्नति के साथ प्रत्येक मानव के प्रति कवि सद्भाव व मैत्रीपूर्ण व्यवहार के द्वारा जगत की सुख-शान्ति चाहते हैं
रोग, मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे, परम अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्व हित किया करे। फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर पर रहा करे, अप्रिय-कटुक कठोर शब्द नहीं कोई मुख से कहा करे । ( पृ० 7 ) संपादकीय में अयोध्याप्रसाद गोयलीय जी ने बिलकुल सुसंगत लिखा है, यद्यपि हिन्दी कविता आज जितनी विकसित और उन्नत आगे प्रस्तुत पुस्तक की कविताएँ कुछ विशेष महत्व नहीं पायेंगी । फिर भी यह एक प्रयत्न है। इससे जैन समाज की वर्तमान गति विधि का परिचय मिलेगा और भविष्य में उनमें उत्तम
साहित्य, निर्माण करने का लेखकों और प्रकाशकों को उत्साह भी।" (पृ० 6 ) विषयानुसार
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आधुनिक जैन कवियों की कविताओं को सम्पादिका ने क्रमश: उत्थान के क्रमानुसार संग्रहीत किया है। प्रथम उत्थान 20वीं सदी प्रारंभ के युगप्रवर्तक और युगानुगामी तथा प्रगति प्रवाह के कविगण, द्वितीय उत्थान सन् 1926 से 1940 तक के एवं प्रगति प्रेरक तथा अन्य कविगण की रचनाएं तदन्तर काल की मानी जायेगी।
इस संग्रह की कविताओं को विषयानुसार भी वर्गीकृत किया जा सकता है। वर्णनात्मक कविताओं में जुगलकिशोर मुख्तार की 'अजसंबोधन', 'कोमल', नाथूराम प्रेमी की 'पिता की परलोक यात्रा पर, 'भगवंत गोयलीय के' 'सिद्धवर कूट', कवि अगास की 'भिखारी का स्वप्न' लक्ष्मीचन्द्र की 'मैं पतझर की सूखी डाली', काशीराम की 'फूल से कोमल' 'राजकुमार की भग्नमंदिर',
1. देखिए - रमारानी जैन -' आधुनिक हिन्दी जैन कवि ' - प्रस्तावना, पृ० 6.